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देश के साथ होगा तो उस व्यापार में जो झगड़ा होगा टॅरिफ का। या झगड़ा होगा नॉन टॅरिफ का। तो उन्हीं झगड़ों का निपटारा करने के लिए यह संस्था काम करेगी। बाकी संस्था की कोई दूसरी जिम्मेदारी नहीं होगी।
इस तरह से गैट का काम चलना शुरु हुआ। एक नियम उसमें यह रखा गया था कि कोई देश का आन्तरिक कानून और गैट के बनाये गए किसी कानून में अगर झगड़ा होगा तो देश का आन्तरिक कानून लागू किया जायेगा। गैट का कानून लागू नहीं किया जायेगा। तो किसी देश की सीमा जब शुरु होती थी तो गैट का कानून वहाँ पर खत्म होता था। तो देशों की सीमा के अन्दर गैट के कानून कभी लगा नहीं करते थे। देश की सीमा के बाहर जो ट्रेड का मामला है सिर्फ उसी में कानून लगा करते थे। तो इस तरह की व्यवस्था शुरु हुई और लगातार चलती रही।
यह व्यवस्था 10 साल चली। 15 साल चली। 20 साल चली। 25 साल चली। 30 साल चली। उसके बाद धीरे-धीरे इस गैट नाम की संस्था को बदलने का एक अभियान अमेरिका ने शुरु किया। अमेरिका ने क्या किया- 1970 और 1980 के दशक में अमेरिका के बाजार में थोड़ी मंदी आ गई। यूरोप के भी बाजार में मंदी आ गई। तो अमेरिका और यूरोप के अर्थशास्त्रियों ने और वहाँ की सरकार ने विचार करना शुरु किया कि हमारे बाजार की मंदी को अगर दूर करना है तो हमारे सामान दुनियां के तमाम दूसरे देशों के बाजारों में ज्यादा से ज्यादा बिकने चाहिए। तो अमेरिका का माल दूसरे देशों में बिकना चाहिए। यूरोप का माल दूसरे देशों में बिकना चाहिए। हालाकि उसके पहले भी बिकता था अमेरिका का माल दूसरे देशों में। जपान का माल दूसरे देशों में। यूरोप का माल दूसरे देशों में। लेकिन ज्यादा से ज्यादा बिकना चाहिए। इस तरह की बात करना शुरु किया अमेरिकी सरकार ने
और यूरोप की सरकार ने। तो फिर उन्होंने क्या किया दुनिया के दूसरे देशों के बाजारों को खुलवाना है अपना माल बेचने के लिए तो उसके लिए कुछ ना कुछ तो कानून बनवाने पड़ेगें। तो अमेरिका ने और यूरोप के देशों ने गैट नाम की संस्था का दुरूपयोग करना शुरू किया। इस काम के लिए गैट में जो पहले कानून बनाये गए थे कि गैट में यह नियम था कि किसी भी देश के आन्तरिक कानून में, आन्तरिक मामले में गैट हस्तक्षेप नहीं करेगा। फिर अमेरिका ने ऐसी व्यवस्था बनाना शुरु किया कि गैट नाम की संस्था के नियम किसी देश के आन्तरिक कानूनों में भी हस्तक्षेप कर सकते हैं और आन्तरिक कानूनों में किसी देश में हस्तक्षेप कर के उस देश के कानूनों को बदलवा कर अपने देश का माल उन देशों में बिकवा कर कोई नई व्यवस्था बना दी जाये। इसके चक्कर में अमेरिका और यूरोप के देश लगे रहे और उन्होंने उसमें थोडी सफलता हासिल की। ३८
.... स्वदेशी कृषि