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आता है। रासायनिक खाद के उत्पादन बेस्वाद, रोगोत्पादक और तुरन्त
सड़ने लगते हैं। इससे अकाल की भीषणता बढ़ती है। 12. सेंद्रिय खाद गोबर-खरपतवार से बनती है, किसान को हर दिन -हर
साल निरंतर यह सब अपने ही खेत और पशु से प्राप्त होत हैं।यहअखूट-निरंतर बहने वाला झरना है। रासायनिक खाद जिन खनिजों से प्राप्त की जाती है उन खनिजों के जल्द ही समाप्त होने का इशारा वैज्ञानिकों ने किया है। मतलब रासायनिक खाद खनिज समाप्ति
के बाद स्वयं समाप्त होंगे। 13. पर्यावरण के साथ सेंद्रिय खाद का सामंजस्य है। रासायनिक खाद
पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ते हैं। रासायनिक खाद कारखाने भी प्रदूषण
बढ़ाते हैं। 14. देहात के आम आदमी, महिला-पुरुष, बच्चे-बूढ़े-अनपढ़ कोई भी सेंद्रिय
खाद बना सकते हैं। इतना सरल है। रासायनिक खाद बनाने के लिये करोड़ों रुपयों की पूँजी, बड़े भारी भरकम सयंत्रों की जरूरत होती है।
तज्ञ लोग चाहिए। यह बड़ा जटिल मामला है। 15. सेंद्रिय खाद की ढुलाई अपने ही बैलों द्वारा किसान आसानी से कर • सकते हैं।रासायनिक खाद की ढुलाई के लिये जहाजरानी, रेल आदि इस्तेमाल होते हैं। भारत में यातायात के साधन पर्याप्त नहीं हैं। उन पर अतिरिक्त बोझा ढुलाई का पड़ता है। इन साधनों का इस्तेमाल करने से हवा में प्रदूषण बढ़ता है। पेट्रोल-डीजल भारत में आयात किया जाता है। इससे परकीय चलन कर्जा उठाकर लेना होता है। ब्याज तो चढ़ता ही है, जनहित विरोधी शर्ते विश्व बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं की
हम पर लदती हैं। 16. सेंद्रिय खाद हमें स्वावलंबी बनाता है। रासायनिक खाद
सेव्यापारी-उद्योगपति, साहूकार, सरकार पर निर्भरता बढ़ती है। रासायनिक महंगा खाद सस्ता दिखाने के लिये इसके उत्पादक कारखानों को तेरह हजार करोड़ रुपयों की सब्सिडी सरकार दे रही है। यानि भारत के हर नागरिक के सिर पर हर साल एक सौ तीस रुपयों का बोझ टैक्स
के रूप में पड़ता है। 17. भारत में आठ करोड़ लोगों को काम स्वरोजगार के तहत सेंद्रिय खाद निर्माण से मिलेगा। इससे गाँव की बेकारी-अर्ध बेकारी की समस्या हल
होगी। रासायनिक खादों के कारण यह ग्रामीण उद्योग समाप्त हुआ है। स्वदेशी कृषि