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खेती को गुलाम बनाया अंग्रेजो ने
(पुसद, यवतमाल में राजीव भाई द्वारा दिया गया व्याख्यान - भाग 1)
देश के सभी सम्मानित किसानों - आज के इस व्याख्यान में मैं खेती और किसानों के बारे में जो स्थिति है भारत की, उसके बारे में कुछ कहूँगा। भारत की खेती,भारत के किसान आज जिस स्थिति में हैं। आज से 150 साल पहले भारत के किसान, भारत की खेती किस हाल में थी। उन दोनों का तुलनात्मक विश्लेषण आज के इस व्याख्यान में मैं करने की कोशिश करूँगा और यहतुलनात्मक विश्लेषण इस दृष्टि से होगा कि 200 साल पहले खेती और किसान की स्थिति बहुत अच्छी थीतो आज उसकी समस्या क्या हो गई और उसको फिर सुधारने के लिए कौन सा रास्ता हो सकता है। वो रास्ता हम सारे देश के लोगों को ढुंढना होगा। उस दृष्टि से आज के पूरे व्याख्यान में खेती और किसानों के विषय को मैंने शामिल करने की कोशिश की है।
आप सब जानते हैं कि भारत में खेती और कृषि कर्म बहुत ही उच्च दर्जे का व्यवसाय माना गया है और भारतीय समाज में कृषि कर्म और किसानों के लिए खेती करना केन्द्र बिन्दु रहा है। ऐसा कहा जाए कि भारतीय समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ है तो यह ठीक ही है। और जो समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ होता है। उस समाज की अपनी कुछ खास तरह की प्राथमिकताएं होती हैं। खास तरह की जरुरतें होती हैं।
भारत का समाज पिछले हजारों सालों से कृषि कर्म को केन्द्र में मानकर चलता रहा, तो इसलिए भारत का समाज कुछ विशिष्ट तरह का समाज है। हमारे यहाँ कृषि की जो प्रधानता रही है। उसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि भारतीय मौसम स्वदेशी कृषि
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