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अब अंग्रेजों ने अपनी पहली नीति का पालन करते हुए भारतीय समाज को आर्थिकरुप से जो तोड़ा। उसमें कल के व्याख्यान में मैंने आपको विस्तार से बताया था कि उद्योगों को किस तरह से तोड़ा गया। व्यापार को किस तरह से तोड़ा गया
और आज के व्याख्यान में मैं बताऊँगा कि कृषि को किस तरह से तोड़ा गया। किसानों को कैसे बर्बाद किया गया। क्योंकि कृषि हमारे समाज का मुख्य केन्द्र थी
और कृषि हमारे देश के व्यवसाय का मुख्य आधार होती थी। तो अंग्रेजों ने भारतीय कृषि को बर्बाद करने के लिए तीन-चार तरह के कानून बनाये।
सबसे पहला कानून जो अंग्रेजों ने भारत की कृषि को बर्बाद करने के लिए बनाया वो किसानों के ऊपर लगान लगाने का कानून था। किसानों के ऊपर टॅक्स लगाने का कानून था। 1760 के पहले इस देश में एक बड़े इलाके में किसानों के ऊपर कभी-भी लगान नहीं लिया गया। अंग्रेजों के पहले इस देश में कुछ ही राज्यों को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी भी राज्य में किसानों पर लगान नहीं लिया जाता था। जैसे मालाबार का एक बहुत बड़ा इलाका होता था। जिसको आज हम दक्षिण भारत के रुप में जानते हैं। उस मालाबार के इलाके में 1760 के पहले कभी-भी किसानों पर लगान नहीं लिया गया। मैसूर राज्य के इलाके में 1760 के पहले किसानों पर कभी लगान नहीं लगाया गया। इसी तरह से भारत के और दूसरे इलाके भी थे। जिन इलाकों में अंग्रेजों के आने के पहले तक कभी-भी लगान की वसूली की बात ही नहीं हुई। लेकिन अंग्रेजों की सरकार ने क्या किया भारत में जब उनका साम्राज्य स्थापित हुआ और उनकी सरकार चलना शुरु हुई उसी समय उन्होंने भारत के किसानों पर लगान लगाना शुरु किया और आप कल्पना कर सकते हैं के कितना लगान वसुलती थी अंग्रेजों की सरकार, कितना टॅक्स वसूलती थी भारत के किसानों से। भारत के किसानों पर अंग्रेजों की सरकार ने किसानों के कुल उत्पादन का पचास प्रतिशत तक टॅक्स लगा दिया था। मैंने जैसे कल आपको बताया था कि भारत के उद्योगों को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के उद्योगों पर 10-12 तरह के टॅक्स लगाए थे। इसी तरह से भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के किसानों पर टॅक्स लगाए थे और जो सबसे पहला टॅक्स भारत के किसानों पर लगाया गया। जिसको लगान के रुप में आप जानते हैं वो पचास प्रतिशत होता था। माने किसान जितना कुल उत्पादन करता था अपनी खेती में, उसका पचास प्रतिशत उत्पादन अंग्रेजों की सरकार छीन लेती थी। जो किसान अंग्रेजों की सरकार को अपने उत्पादन का पचास प्रतिशत हिस्सा नहीं देता था। उस किसान की हत्या करवा देना, उस किसान की झोपड़ी जला देना। उस किसान की स्वदेशी कृषि