Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 11
________________ विजयप्रशस्तिसार । लक्षणोपेत पुत्रको जन्म दिया । इस बालक के मुख पर सूर्यके समान तेज चमकता था । सूति का गृह इन्ही बालक के तेज से देदिप्य. मान हो रहा था। कमा शठ के कुल में-मित्र मण्डल में असीम आनंद छा गया । शेठने बड़ा भारी जन्मोत्सव किया । अपने नगर के सैकड़ो याचक धनी कर दिये और वहां के राजा उदयसिंह से प्रार्थना करके या द्रव्य से जिस प्रकार होसका बहुत से कैदी कारागार से छुड़वा दिये। बालक दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। सब लोग इसको देखकर आनंद में निमग्न होजाने लगे। जगत् के इस नये अतिथि के उत्त. मोत्तम लक्षण और चष्टाएं देख कर सामुद्रिक शास्त्री लोग कहने लगे कि-'यह बालक इस भूमंडल में जीवों को मोक्ष मार्ग को दिखाने वाला एक धर्म गुरु होगा' । पुत्र को उत्तम लक्षणों से विभूषित देख कर उसका नाम 'जयसिंह' रक्खा गया । अत्यन्त आश्चर्य को करने वाली प्रतिभा वाला यह बालक दिन पर दिन बढ़ने लगा । जयसिंह के उत्पन्न होने के बाद इस गांव की उन्नति अपूर्व ही रूप में होने लगी । अतएव यह बालक सारे नगर को प्रिय हुमा । यह 'जयसिंह' बालक जब पढ़ने के लायक हुआ, तब माता पिताने इस को शुभ मुहूर्त में बड़े महोत्सव पूर्वक पाठशाला में बैठाया। बुद्धिवान 'जयसिंह' बुद्धि के प्राधिक्य से उत्तरोत्तर अपूर्व विद्याओं की शिक्षा ग्रहण करता हुआ आगे बढ़ा । जब वह अपने अध्यापक से थोड़े समय में सम्पूर्ण विद्याओं को ग्रहण कर चुका तब उनके माता-पिता ने जयसिंह के विद्या गुरुका द्रव्यादि. क से बहुत सत्कार किया। - प्रिय पाठक! देखिये क्या होता है ? जयसिंह अभी तो बाल्यावस्था में हो है। माता पिता की सेवा-भक्ति कुछ भी नहीं की है।

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