Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ छठा प्रकरणा। ४१ मस्त लोगों को दर्शन देते हुए उपाय को अलंकृत किया । भाद धर्ग की स्त्रियों ने सुवर्ण की चौकियों पर हीरा माणिक, मोती इ. स्यादि के साथीए और नंदावर्त वना२करके बड़ी श्रद्धा से सूरीश्वर की पूजा की । श्राद्ध वर्ग ने अतुल द्रव्य का ब्यय करके शान पूजा प्रभावना इत्यादि किए। श्रीसंघ में स्वामी वाल्सल्य होने लगे। सूरी. श्वर की धर्मदेशना से हजारों लोग कर्मक्षय करने लगे और सूरी श्वर के प्रताप से इनकी कीर्ति भी चारों ओर फैल गई। इस कीर्ति को सुन कर श्रीखानखान राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और श्रीसूरीश्वरमहाराज के दर्शन करने की उसकी प्रबल इच्छा हुई। उसने आदर सत्कार के साथ अपने सेवकों को भेज कर सूरीश्वर को राजसभा में बुलाये । सूरीभर भी अपने बिद्वान् शिष्यों को साथ लेकर सभा में पधारे । वहां जाकर सूरिजीने समयोचित श्रीसर्वशभा. षित धर्मप्रकाश किया। इस धर्मोपदेश को सुनते ही सारी सभा प्रसन्न होगई । और धर्मोपदेश को सुनकर राजा को यही कहना पड़ा कि "इस कलियुग में यदि कोई धर्म मार्ग प्रशस्य है तो यही मार्ग है जो श्रीसूरीश्वरजीने प्रकाश किया है" । राजा के मुखार्षिद से इस प्रकार के वचन निकलने से श्रीसूरीश्वर की महिमा की कोई सीमा ही नरही । राजा के प्रत्याग्रह से सूरीश्वर ने इस सालका चातुर्मास इस राजनगर में ही किया । इसले राजा के मन में बहुत ही गौरव उत्पन्न हुआ। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90