Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 86
________________ तेरहवा प्रकरण। की यात्रा के लिये विहार किया। साथ में द्वीप बन्दर का भीसंघ भी पता । बहुत दिन व्यतीत होने पर प्राप गिरनार जी पहुंचे। इस समय गिरनार में 'खुरम '. राज्य करता था। यह राजा स्वभाष ही साधुनों के प्रति बड़ा फर स्वभाव रखताथा । किन्तु भीविजवसेनरिजी के तपस्तेज से यह भी शान्त हो गया । कहां तक कहा जाय ? । राजा ने सुरीश्वर का बड़ा ही पवार विषा । एक दिन भीसंघ के साथ में सब लोग गिरि पर पढ़े और श्रीसिद्धराज जयसिंह के महामंत्री 'सज्जन श्रेष्ठी' द्वारा निर्माण किये हुए 'पृथिवी जय' नामक प्रासाद में विराजमान भी मेमीमाथ की मनोहर प्रतिमा के दर्शन करके सब लोग कृतकृत्य हुए । अनेक प्रकार से मुनिवरों ने भाव पूजा और बंधने द्रव्यादि से पूजा की । वहां पर कुछ दिन ठहर कर सब लोग देवपत्तन पाए । यहां से द्वीप बन्दिर का संघ गुरुवंदन करके स्वस्थान पर चला गया । देवपचनमें सूरीश्वरने दो चातुर्माम करके बड़े उत्सव के साथ दो प्रतिष्ठाएँ की । इसके उपरान्त यहां से विहार करके देलवाडे में पधारे। यहां मानेपर वह फिरंगी लोग बो भीनन्दिवि. जय जी को प्रार्थना करके पहले अपने द्वीप बन्दर में ले गये थे उन्होंने यह विचार किया-'श्रीगुरु महाराज वर्तमान देवकुला पाटक में पधारे हुए हैं। तथा जिन के प्रभावसे यहां का संघ वात्रा के लिये गत वर्ष में गया था, वह भी सकुशल पहुंच गया है। अत एव उस एपकारी महात्मा का पुनः दर्शन करना चाहिये।'.. इस प्रकार विचार करके फिरंगी लोग देवकुलपाटक में प्रार', और श्रीगुरु महाराज से प्रार्थना करने लगेः__ " हे गुरो ! इस जगत में हितकारी कार्यों के करने में दक्ष आप ही हैं। मापही आषाढ़ के मेघ की तरह इस जगतके वाल..

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