Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ विजयप्रशस्तिसार । तेरहवां प्रकरण । (कषितान-कलास-पादरी युक्त फरंगी समुदाय की प्रार्थना । श्रीनन्दिविजयका द्वीपमन्दिर जाना । गिरनारजी की यात्रा । स्वयं श्रीसूरीश्वर का द्वीपमन्दिर पधारना । संखेश्वर की यात्रा । ग्रामानुग्राम विचरना और . अन्तिम उपसंहार)। जिस समय में भी विजयसेनसूरीश्वरजी देवकुल पाटक में विराजते थे । उस समय में द्वीप बन्दर के फिरंगी लोग, अपने कपतान ( अधिकारी विशेष ) कलाम ( अमात्य विशेष ) पादरी (धर्म गुरु ) इत्यादि के साथ श्रीसृरिजी के पास प्राकर प्रार्थना करने लगे: "हे गुरुत्तंस ! हे निर्मल हृदय ! आप द्वीप बन्दिर पधार कर हम जैसे अन्धकार में पड़े हुए लोगों का कुछ उद्धार करिए । कदाचित आप स्वयं न मानके तो किसी एक उत्तम चेले को भेज करके हमारे हदयों को शान्त करिये।" इस प्रकार फिरंगी लोगों के प्रत्याग्रह से सुरीश्वर ने अपने नन्दिविजय नामक चमत्कारी मुनिको द्वीप बन्दर भेजा । भीनन्दिविजबकी कला कौशल्य और चमत्कारिक विद्यामों से लोग अत्यन्त प्रसन्न हुए। लोगों ने भीनन्दिविजय मुनीश्वर का बहुतही सत्कार किया। आपने यहां पर तीन रोज ठहर करके व्याख्यान द्वारा जी. वादि नव तत्वों का उपदेश करके लेागो के अन्तःकरणों में बहुत ही प्रभाव डाला । भीसंघ के साथ तीन दिन रह कर भाप पुनः गुरु महाराज के पास भागए । एक दिन मापने श्रीनेमनाथ प्रभु

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90