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विजयप्रशस्तिसार । पदवी धारकथे। इस पवित्र समूह में अनेक व्याकरण शाख के पारगामी, कितने तर्क शास्त्रमै वृहस्पति तुल्य थे। और कितनेही माशुचवि तथा व्याख्यान देने में पाचस्पति होरहे थे । गणधर-श्रुत केवरीकतसूत्र, भोपांगादिमें तथा बहुत से गणितशास्त्र, ज्योतिष, साहित्य छन्दानुशासन,लिंगानुशासन, धर्मशास्त्र आदि सब विषयों के जानने वाले पैकड़ों साधु भीसूरिजी महाराज के साम्राज्य में थे। - भीसूरिजी महाराज के उपदेश से भीशत्रुञ्जय-भीतारंगा-भी. विद्यानगर-भीराणपुर-भीमारामणपुर-पत्ननगर में पंचासर पा. श्र्वनाथ-भीनारंगपुरीयपार्श्वनाथादि के तीर्थ का इत्यादि बहुत से तीर्थोशार हुए । प्रतिष्ठाएं तो बहुतसी जीवन चरित्र में दिखाई गई हैं । भीमेश्वर प्राम में श्रीपार्श्वनाथ का शिखरबंध मन्दिर का निर्माण भी सूरीश्वर ने करवाया था। - नगर २ में स्थान२ में राजा महाराजाओं के अतुच्छ महोत्सवों से पूजित श्रीहीरविजयसूरि और भोविजयसेनसरि पुण्य प्रभावसे इस चरित्र को पढ़ने वाले पाठकों को उत्तमोत्तम गुणों की प्राप्ति हो, यह इच्छा करता हुमा इस पवित्र चरित्र को यहांही समाप्त करता है।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
सूचना ' "भीहीरविजयसूरि, मकबर बादशाह को धर्मोपदेश दे रहेहैं," इस भाव की फोटु जिसको चाहिए, वह 'श्वेताम्बर मोसवाल जैन लायब्रेरी, चौक लखनऊ' इस पतेसे मंगवाते । केबीनाइट ) फूललारश).