Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 87
________________ *विनयाशक्तिसार । तारन छपमा हमारे साम्राज्य में स्थित डीप बन्दर में आप समास्मिा और हमारे मनोस्थों को पूर्ण करिये।". । इस प्रकार की सस्याग्रहपूर्ण प्रिनतिको मुनकर मूरिजी मरे विचार किया कि फिरंगी लोगों का इसना माह है। द्वीपहिरके भीसंघ का मानह तो पहिले से ही है। मायावहां पर जाना उचित है। वहां जाने से धर्म-धनका लाभ तो अपने को होगा। और अन्य जीवों को भी बोधि प्राप्त रूप लाभ होगा। फिर रस बन्दर में अभीतक किसी प्राचार्य का जाना नहीं हुआ है इत्यादि बाते मोच करके भीषिजयसेनसूनि द्वीप बन्दिर पधारे । मार्ग में द्वीपाधिपति फिरंगी ने 'मचुआ' नामक वाहन को भेजा और उसमें बैठ करके भाष पार उतरे । गुरु महाराज के पुर प्रदेश के समय फिरंगी लोगों ने तथा श्रीसंघ ने बड़े उस्लाहो प्रायअवर्णनीय महोत्सव किया। मिष्य ब्याख्यान वाणी होने लगी। सबलोग सूरीश्वर के उपदेश रूपी अमृत से अपनी तृषाको शान्त करने लगे। एक दिन फिरंगी खोगों की मुख्य सभा में भी जोर और सूरीश्वर ने सत्य धर्म का प्रति प्रदान किया । अर्थात् इ. होने यह बात सिद्ध करके दिखाया कि-अदि को भी मोक्षमार्ग को साधन कराने वाला धर्म है तो वह जैन धर्म ही है। लोगों के अन्तःकरण में इस बातका निश्चय होगया । समस्त लोग-मास्वयं युक्त होकर यह कहने लगे:-"महा! सूरीश्वर जी का कैसा प्रभाव है कि फिरंगी से प्राचार विहीन लोग भी इसके उपदेश से संतुष्ट होमए। महात्मानौ के जातुर्य की क्या बात है।" कुछ दिन रहकर देवकुल पाटक में भाकर सूरीश्वर ने चातुर्मास किया। ...चातुर्माण होने के पश्चात् 'नवानगर' के कितनेही अधिकारी वो मस्याग्रह से माप" भाणवाड होते हुए नवानगर पधारे।

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