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विजयप्रशस्तिसार। : यहां के लोगों को भी धर्मदेशना का अपूर्व लाभ मिला । सूरि जी के समुदाय की, ज्ञान-ध्यान-तप-संयमादि क्रियाओं का कुछ ऐसा प्रभाव पड़ता था कि उनको देखते ही लोगों को धर्मकी भोर अभिरुचि हो जाती थी। भापके सत्संग से उपधान मालारोपणचतुर्थव्रत-बारहवत भादि अनेक प्रकार के नियम श्रावकों ने प्रहण किए थे। इसी तरह सारा चातुर्मास सूरीश्वर जी के वारक्षित लास लेही समाप्त हुआ।
कुछ काल पहिले श्रीहीरविजयसूरीश्वर के समय में (सम्बत १६२६ के सात में ) रामसैन्य नामक नगर की भूमि में से एक म. नोहर श्रीऋषभदेव भगवान की प्रतिमा निकली हुई थी। यहां के श्रावकों ने इस प्रतिमा को इसी स्थान में एक भूमिगृह में स्थापन की थी। इस बात की प्रसिद्धि जगत में पहले ही से फैल चुकी थी।
इस तीर्थ की यात्रा करने के लिये राधनपुर का भीसंघ श्रीसूरीश्वर के साथ में चला । क्रमशः चलते हुए बहुत दिन व्यतीत होनेपर इस तीर्थ में वह संघ प्रापहुंचा । श्रीऋषभदेव भगवान के दर्शन करके सब लोग कृतकृत्य हो गए । श्रीसंघ ने भी बहुत द्रव्य का व्यय करके स्थावर-जंगम तीर्थ की अच्छी तरह भक्ति की। यहां की यात्रा करने से लोगों को अपूर्व भाव उत्पन्न हुए। फिर लौट करके सब लोग राधपुर पाए । सूरीश्वर आदि मुनिवर भी उस समय वहां पधारे। । राधनपुर में सूरीश्वर के पाने के बाद अनेक शुभ कार्य हुए। जिनमें 'बासणजोट ' नामक भावक का बड़े उत्साह के साथ एक नए मंदिर की प्रतिष्ठा कराना, एक मुख्य कार्य था। कुछ दिन यहांपर ठहर करके फिर आप 'बड़ती' नगर में गए । यहां श्री