Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 79
________________ ७ विजयप्रशस्तिसार । श्रीसंभवनाथ स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । इसी के साथ २ एक नाकर नामक श्रावक ने भी ५१ अंगुल प्रमाण की श्रीसंभवनाथ स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । इस अवसर पर स्तम्भतीर्थ के रईस वजश्रा (ब्रजलाल) नामक श्रावक मे ( जिसने की पहिले भी श्रीपार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा करवाह थी ) एक पार्श्वनाथ प्रभु की तिरसठ अंगुल प्रमाण की मूर्ति बनबाकर प्रतिष्ठा करवाई । " इस पार्श्वनाथप्रभु की महिमा अपूर्वही होने लगी । जो व्यक्ति स्वर्ग और मोक्ष को देने वाले इस पार्श्वनाथप्रभु के नाम-मंत्र का सर्वदा अपने अन्तःकरण में स्मरण करने लगा, उसको श्राधिव्याधि-विरोध - समुद्रभय-भूत-पिशाच - व्यन्तर-चोर आदि सभी प्रकार के भय नष्ट होने लगे । बात भी ठीक है । 'भीपाइ नाथाय नमः इस मंत्र में ही इस प्रकार की शक्ति स्थापित है । पूर्वाचार्योंने भी यही कहा है कि:प्राधिव्याधिविरोधिवारिधियुधि व्यालस्फटालोरगे । भूत प्रेतमलिम्लुचादिषु भयं तस्येह नो जायते ॥ नित्यं चेतसि ' पार्श्वनाथ ' इति हि स्वर्गापवर्गप्रदं । सन्मन्त्रं चतुरक्षरं प्रतिकलं यः पाठसिद्धं पठेत् ॥ १ ॥ इसके सिवाय चातुर्मास समाप्त होने के पश्चात् 'सिंघजी नामक श्रेष्ठीने अजितनाथ प्रभुकी प्रतिमा स्थापित करवाई।' श्रीपाल ' नामक जहरीने ६७ अंगुल प्रमाण की पार्श्वनाथकी, प्रतिमा प्रतिष्टित करवाई। जिसका नाम 'जगद्वल्लभ' रक्खा । एवं स्तम्भ तीर्थ के रईस तेजपाल नामक भावक ने ६६ अंगुल प्रमाण की आदीश्वर भगवान् की प्रतिमा स्थापित करवाई । पट्टण नगर निवासी तेजपाल सोनीने ४७ अंगुल प्रमाण की भीसुपार्श्वनाथ प्रभुकी प्रतिमा · 3

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