Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 80
________________ बारहवा प्रकरण । निम्मित कराई । इन ऊपर कहीं प्रतिमाओं और अन्य अनेक प्रतिमानों की प्रतिष्ठा भीविजयसेन सूरीश्वर ने अपने हाथ से की। इस साल में भीसूरीश्वर के उपदेश से श्रीतेजपाल सोनी ने संघपति होकरके तीर्थयात्रा करने को संघ निकाला । हजारों मनुष्य को साथ लेकर श्रीगुरु माझा प्राप्त कर संघपति यात्रा के लिये चले । मार्ग में जहां २ श्रावक का घर आता था, वहां २ प्रत्येक घर में एक २ 'महिमुन्दिका' देते थे । पहिले पहल इस संघ ने तीर्थाधिराज श्रीशत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा की । इसके पश्चात् मीरोही-राणपुर नारदपुरी-वरकाणा आदि तीर्थोकी यात्रा करके मारवाड में स्थित प्रायः समस्त तीर्थों की यात्रा करके सारासंघ अपने देश में आया । अपने नगर पाने के बाद संघपतिने श्रावक के प्रत्येक घरमें एक २ लाइडू और रुपये युक्त पकर थाल की प्रभाव. ना की । यह सब प्रभाव भीविजयसेनसूरिजी का ही था । क्योंकि तीर्थ यात्रा-स्वामिभाईकी भक्ति मादि शासन प्रभाधना के कार्य करने से कैसे २ फलकी प्राप्ति होती है ? यह सब गुरु महाराज के उपदेश से श्रेष्टी ने जाना था। · भीविजयसेनसूरि जी के अहमदाबाद में रहने से लोगों को धर्मोपदेश का अपूर्व लाभ हुआ। लोगों ने धर्मकार्यों में द्रव्य व्यय करने में जरा भी संकोच न किया। इस उदार चरित का पूरा ब. न करना कठिन है। सं० १६५६ के एकही चातुर्मास में श्रावकों ने 'एक लक्ष' महि मुन्दिका व्यय किए। . इसके बाद सूरीश्वर की इच्छा राधमपुर जाने की हुई। यहां से चलकर पहिले श्रीसंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा करके सूरीश्वर ने राधनपुर के समीपभूमि को प्राप्त किया । नगर के भावकों ने बड़े उत्साह के साथ सूरिजी का सामेला किया। ...

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