Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ विजयप्रशस्तिसार । कहने के निमित्त एक बड़े ग्रंथ की आवश्यकता है। मारांश बह कि यह वर्ष भी ऐसा हुआ कि जिससे सारे देश के लोग परम प्र: सन्न रहे । अहमदाबाद शहर में हैं। चातुर्मास समाप्त करके आप कृष्णापुर ( कालुपुर ) पधारे। एक दिन कालुपुर में विराजते हुए सूरीश्वर ने परम्परा से यह बात सुनी कि:-" शहर में ढींकु' नामक पाटक (पाडे) में श्रीचिं. तामणि पार्श्वनाथ भगवान किसीने भूमि में स्थापन किए हुएहैं"। लोगों की इच्छा प्रभू को बाहर निकालने की हुई । लेकिन राजाशा के बिना कैसे निकाल सकते थे ? इस समय अहमदाबाद में काजी हुसेनादि रहते थे। इनसे मुलाकात करके श्रीसूरीश्वरने भीप्रभु को बाहर निकालने की आज्ञा दिलवाई।" इसके बाद सं० १६५४ में शिष्ट पुरुष को स्वप्न देकरके श्रीप्रभु चिंतामाणिपार्श्वनाथ प्रभु प्रगट हुए । प्रभु के प्रगट होने से चारों ओर मानन्द छागया। भगवान के दर्शन से लोगों की इष्टसिद्धिएं होने लगी। इस प्रतिमा को भीसंघने सिकन्दरपुर में बड़े उत्सव के साथ स्थापन किया। एक दिवस श्रीसूरिजी अपने शिष्यमण्डल के साथ श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के मन्दिर में पधारे और इन्होंने जो प्रभुकी स्तुति की। इसका थोडासा उल्लेख यहां पर किया जाता है। ... "जिसका नाम स्मरण करने से श्वास-भान्दर-श्लेष्म और क्षयादि रोग नाश होजाते हैं। ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो। 'जिसका नाम स्मरण करने से समस्त प्रकार के चोर भाग जाते हैं ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो। "जिसका नाम स्मरण करने से युद्ध में जय होता है, जिसके नाम स्मरण से भवी प्राणी भय से छूट जाते हैं, जिसका नाम

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90