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ग्यारहवा प्रकरण । . सूरि में जैन शासन की प्रभुता रूप जो लक्ष्मी थी वही श्रीविजय. सेनसूरि ने प्राप्त की।
ग्यारहवां प्रकरण ।
( श्रीविजयसेनसूरि की कीहुई प्रतिष्टाएं । तीर्थयात्राएं । भूमि में
से श्रीपार्श्वनाथ प्रभू का प्रगट होना । श्रीविद्याविजय (वि.. जयदेवसूरि ) को प्राचार्यपद एवं भिन्न २ मुनिराजों
को भिन्न २ पद प्रदान होना इत्यादि)। अब भीतंपगच्छ रूपी भाकाश में सूर्य समान श्रीविजयसेनसूरि भव्य जीवों को उपदेश देते हुए विचरने लगे। श्रीपत्तन न. गर से बिहार करके स्तम्भ तीर्थ ( खंभात )के लोगों के निवेदन से प्रापका खंभात आना हुमा । यहांपर मापका एक चातुमास हुवा। खंभात से विहार करके आप अहमदाबाद पधारे। यहां के लोगों ने बड़ा उत्सव किया। सुना-चांदी के द्रव्यसे सूरीश्वर की पूजा की। यहां एक 'भोटक' नामक भावक, जोकि बड़ा श्रद्धावान था, रहता था। इस महानुभाव ने बड़े उत्सव के साथ श्रीसूरीश्वर हाथ से.जिन बिंब की प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रतिष्ठा के समय में सुरिजी ने पं० लन्धिसागर मुनि को उपाध्याय पद प्रदान किया। यहांपर एक 'वच्छा' नामक जौहरी ने भी सूरीश्वर द्वारा जिन विव की प्रतिष्ठा करवाई। इन प्रतिष्ठानों के अतिरिक्त पंचमहायत अणुव्रत ब्रह्मवत आरोपणादि बहुत से शुभकार्य सूरीश्वरने यहांपर किए । यहांपर सूरिजी के चातुर्मास करने से मारे नगर के लोगों को आनंद का अपूर्व लाभ हुआ। इस समय का सम्पूर्ण वृतान्त