Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 60
________________ नववा प्रकरणा । ५१ शफहम ' शब्दका विशेषण देकर उनकी अत्यन्त प्रशंसा की । इस समय राजा की अनेक सामग्री के साथ लोगों ने बड़ा उत्सव किया । एवं रीत्या राजसभा में बड़े सम्मान को प्राप्त करके श्रीबिजयले मसूरि अपने शिष्य मण्डल के साथ उपाभय में पधारे ! श्राद्ध वर्ग ने आज से एक अठार महोत्सव प्रारम्भ किया । इस अपूर्व शासन प्रभावना को देखकर अन्यदर्शनी लोग जैनों का एक छत्र राज्य मानने लगे । नववा प्रकरण ---- ( ब्राह्मणों के कहने से राजाका भ्रमित होना, श्रीविजयसेनसूरिके उपदेशसे राजा का भ्रम दूर होना । ‘इश्वर'का सच्चास्वरूप प्रकाश करना और सूरिजी के उपदेशसे बड़े २ छ कार्योका बन्द करना ) इस प्रकार सूरिजी का और राजा का प्रगाढ़ प्रेम दिन परदिन चढ़ने लगा । सूरिजी की महिमा भी बढ़ने लगी । इस जैन धर्मकी महिमा को नहीं सहन करने वाला एक ब्राह्मण एक दिन राजा के पास जा कर वोला: -- "हे महाराज, ये जैन लोग, पाप पुञ्ज को हरण करने वाला - अगत् को बनाने वाला - निरंजन - निराकार - निष्पाप - निष्परिग्रह श्रादि गुण विशिष्ट 'ईश्वर' को मानते नहीं है । और जब वे लोग ईश्वरही को नहीं मानते हैं तो फिर उन का धर्म मार्ग वृथा ही है । क्योंकि जगदश्विर की सत्तारहित होकर ये लोग जो कुछ

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