Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 48
________________ छठा प्रकरण । . उपयुक्त वारह दिनके सिवाय ' नवरोज का दिन '-' रविवार का दिन ' 'फरबरदिन महिने के .पहिले अठारह दिन''अधीज महिना सारा' इत्यादि दिनों में भी कोई हिंसा न करे, ऐसा फर• मान पत्र अपने राज्य में प्रचार किया था। तथा इस समयमें राजा ने श्रीहरिविजयसूरि जी को 'जगद्गुरु ' एसी उपाधि दी थी। यह सब बात ग्रन्थान्तरों से ज्ञात होती हैं। इस प्रकार बहुत से कार्यों को कराते हुए श्रीसूरीश्वर ने इस साल का चातुर्मास फतेपुर में ही किया । यहांपर चातुर्मास करले से बादशाह को भी बहुत कुछ लाभ की प्राप्ति हुई। छठवांप्रकरण। (विजयसेनसूरि व उनके शिष्यका खरतरगच्छ वालों से शास्त्रार्थ, खरतरगच्छ वालों का परा जय होना और राजा खानखान से विजय सेनसूरिकी मुलाकात-इत्यादि) इधर पूज्यपाद श्रीविजयसेन सूरीश्वरजी भ्रमर की तरह प्रामानुग्राम विचरते हुए, दो चातुर्मास अन्यत्र करके तृतीय चातुर्मास पचन में करने की इच्छा से सं-१६४२ के वर्ष में पुनः पत्तन'नगर में यहाँ पाने के बाद पाचक धर्मसागर के बनाए हुए " प्रवचन पर" में सवारगम्य बालों से घरीघर का शास्त्रार्थ हुआ। बह विषाद लगातार चौदहरोज तक राजा की सभा होता रहा। अन्तमें चौदवे दिन सूरिशेखर श्रीविजयसेनसूरि का जय और बरतरगच्छ के आचार्य का पराजय हुआ । स्वरतरगच्छ वाले बड़े रुष्ट होगए । A.A

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