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पांचवा प्रकरण।
३१ में थी। लेकिन यह राजा अधिकतया 'फतेपुर' (सिकरी ) में रहता था। राजा अकबर का राज्य चारों दिशाओं में फैला हुआ था। यह वही प्रकवर है जो कि हुमाऊ का पुत्र था। एक समय की बात है कि अनेक राजामों से नमन कराता हुआ यह अकबर बादशाह धर्माधर्म की परीक्षा करने लगा । जिससे परलोक की संम्पत्ति प्राप्त हो, उस प्रकार का पुण्य जिस मार्ग में हो उस मार्ग की परीक्षा करने में परीक्षक हुभा। इतना ही नहीं, किन्तु प्रत्येक दर्शन के धर्म गुरुमों से मिलना भी इसने भारम्भ किया । राजा मकबर बौद्धादि पांच दर्शनों के धर्म गुरुओं से साक्षात कर चुका, किन्तु अपने २ मतके अभिप्रायों को स्पष्ट रूप से स्थापित करके
आत्मा का प्रियमार्ग बतानेवाला इन पांचो दर्शनों के गुरुओं में मे किसी को नहीं पाया । जब राजा ने कोई भी मनोश मुनिको यथार्थ रूप में नहीं देखा तब उदास होकर चुप बैठा।
एक दिन 'अतिमेतखान' नामक किसी पुरुष से राजाने सुना कि इस जगत् में मनोहर भाकृति वाले, सत्यवचन को कहने वाले, महा बुद्धिमान, समस्त शास्त्र के पारगामी 'श्वीहीरविजयसूरि' नामके मुनीन्द्र हैं । सूर्य को तरह वह भी एक प्रतिभाशाली पुरुष है । इस . प्रकार की जब प्रशंसा सुनी तब राजा ने बड़े उत्साह से पूछा कि " वह इस बस्त कहां हैं?" अतिमेतखान ने कहा कि महाराज! घे सूरीश्वर इस बख्त गुजरात देश में भव्यजीवों को मुक्ति मार्ग दिखा रहे हैं। इस प्रकार निष्कपट बचन सुन करके राजा बहुतही प्रसन्न हुमा । तदनन्तर राजाने भीहीरविजयसूरीश्वर को बुलाने के लिए एक पत्र लिख कर अपने ‘मेवड़ा' नामक मनुष्यों के हाथ 'अकमिपुर में स्थित श्रीवस्त्रान नामक शाही के पास भेजा। उन्होंमे जाना कि भीहीरविजयसूरि इस समय गन्धारबन्दर में हैं।