Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 42
________________ पांचवा प्रकरण। भीमब्बरबादशाह की राजसभा में पधारे । इन विद्वमण्डलीको देखते हुए सारी सभा हर्षित होगई। स्वयं अकबरबादशाह ने वि. नयपूर्वक सामने जाकर के सुस्वागत पूछने के साथ श्रीहीरविजय. सूरीश्वर के पादद्वय में नमस्कार किया । इस समय की शोभा को कौन वर्णन कर सकता है ? नमस्कार करने के समय में श्रीसूरीश्वरने, सकलसमृद्धि को देने वाली किन्तु यावत् मोक्षफल को देनेवाली ‘धर्मलाभः' इस प्रकार की प्राशिष देकरके राजा को सन्तुष्ट किया । (जैनमुनि लोग किसीको आशिष देते हैं तब 'धर्मलाभोऽस्तु ' यही शब्द कहते हैं । ) अकब्बरवादशाह की राजसभा में जिस समय हीरविजयसूरि जी पधारे और जब अकबरबादशाह की भेट हुई, उस समय क्या हुआ ? इस विषय में जगद्गुरु काव्य के प्रणेता पक श्लोक से कहते हैं कि: चंगा हो गुरूजीतिवाक्यचतुरो हस्ते निजं तत्करं कृत्वा सूरि वरान्निनाय सदनान्तर्वस्त्ररुद्धाङ्गणे । तावच्छ्री गुरवस्तु पादकमलं नारोपयन्तस्तदा । वस्त्राणामुपरीति भूमिपतिना पृष्ठाः किमेतद् गुरो । अकबरने पूछा-"गुरुजी ! चंगे तो हो ?” फिर उनका हाथ पकड़ कर उन्हें महलों के भीतर लेगया । और विछौने पर विठाना चाहा,परन्तु सूरीश्वरने वस्त्रासन पर पैर रखने से इनकार किया। इस पर अकबर को प्राश्चर्य हुआ । और सूरिमहोदय से उसने इसका कारण पूछा । जैन शास्त्रों में इस तरह बिस्तर पर बैठने की आक्षा नहीं है, इत्यादि बाते जब अकबरने सुनी तब उसे और भी आश्चर्य हुआ। .. अकबरबादशाह के नमस्कार करने के बाद, शेखुजी-पाहुड़ी

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