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विजयप्रशस्तिसार । पेसा जान करक उन्ही लोगों को वहाँ भेज दिया। जब यह लोग वहां पहुँचे तो उनके मुखसे राजा अकब्धर का बुलावा सुन कर सूरीश्वरादि सब कोई परमासन्न हुए । राजा का पत्र पढ़ा । और इस के बाद सूरश्विर ने वहां जाने का विचार निश्चय रखा।
चातुर्मास पूर्ण होने के पश्चात् मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी के दिन शुभ मुहूर्त में श्रीसूरीश्वर ने गन्धारबन्धर से बिहार किया। 'स्थानर में, नगर२ में उत्तमोत्तम महोत्लवपूर्वक राजा-महाराजाशेठ शाहूकार सभी से परम सन्मानित होते हुए और जिज्ञासुओं को संसार सागर से पार उतरने का मार्ग दिखाते हुए और स्वस. मुदाय को ज्ञानाभ्यास कराते हुए, गुजरात, मेवाड़-मालवा आदि देशों में होकर श्रीमुनिराज श्रीफतेपुर ( सीकरी), कि जहां अकब्बर बादशाह रहता था, वहाँ पधारे। .
सं-१६३६ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी के रोज प्रातःकाल में सूरीश्वर ने पुर प्रवेश किया। इस प्रवेशोत्सव के समय में लोगो ने बहुत कुछ दान किया । इन लोगों के दानों में 'मेडता' के रहने वाले 'सरदारांग' नामक श्रावक ने जो दान किया वो सबसे बढ़ कर था। नगर प्रवेश के पश्चात् सूरीश्वर ने विचार किया कि-अय पहिले अकबर बादशाह से मिलना अच्छा है । राजा को मिलने का समय निश्चय करके सैद्धान्तिक शिरोमणि, वाचक श्रीविमज वर्ष गणि-अष्टावधान शतावधानादि शक्ति धारक याचक श्रीशान्ति चन्द्रगणि-पंण्डित सहजसागरगणि-पण्डित सिंहविमरतगणिवक्तृत्व कवित्वकलावान् पण्डित हेमविजयगणि-वैयाकरणचूडामणि पण्डित लाभविजयगणि और गुरुप्रधान श्रीधनविजयगणि प्रमुम्न तेरह मुनि तथा श्रीथानसिंघसा-श्रीमानसिंघसा-कल्याण सा आदि अनेक श्राद्ध वर्ग को साथ लेकर श्रीहीरविजयसूरीश्वर