Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 24
________________ तीसरा प्रकरण । अब हीरहर्षमुनि, प्राणाति पात-मृषावाद अदत्तादान-मैथुन और परिग्रह विरमणरूप पांच महाव्रतों को,र्यासमिति-भाषासमिति एषणासमिति-निक्षेपणासति-पारिष्टापनिकासमिति रूप पांच समिति को,मनगुप्ति-बचनगुप्ति-कायगुप्ति रूप तीनगुप्ति को सम्यकप्रकार से पालन करने लगे । आपने थोड़े ही समय में अपने गुरु महाराज से स्वशास्त्र का सम्पूर्ण अभ्यास कर लिया और जैनसिद्धान्त के पारगामी होगए । एक दिन गुरुवर्य श्रीविजयदानसूरिजी अपने. अन्तः. करण में सोचने लगे कि " यह हीरहर्षमुनि बड़ाबुद्धिमान है, तार्किक है, अतएव यह अगर शैवादिशास्त्रों को जानने वाला होजाय तो बहुत ही उत्तम हो । जगत में यह अधिक उपकार कर सकेगा, जैन शासन का उद्योत भी विशेषरूपेण कर सकेगा।" इस विचार को मुनि महा. राज ने केवल मन ही मात्र में न रक्खा, किन्तु इसको कार्य में लाने की भी कोशिश की । पाप ने शीघ्र हीरहर्षमुनि को दक्षिण देश में जाने की प्रेरणा की । क्योंकि उस समय में दक्षिण में शैवादि शास्त्रों के वेचा अच्छेर पण्डित उपस्थित थे। हीरहर्ष तो तय्यारही थे। केवल माझा की ही देरी थी। भीविजयदानसूरीश्वर ने श्रीधर्मसागरगणि प्रमुख चार मुनिराजों के साथ में हीरहर्ष को दक्षिण देशकी ओर भेजा । दक्षिा स देश में एक देवगिरिनामका किला था । वहां जाकर नि पांचों ऋ. षियों ने निवास किया । इस देवगिरि में रह कर इन्होंने चिन्तामण्यादि शैवादि शास्त्रों का प्रखर पाण्डित्य थोड़े ही दिनों में प्राप्त किया। कार्य सिद्धि होने के बाद ये लोग तुरन्तही गुजरात देश में लौट पाए । जिस समय यह गुजराज आए उस समय गुरुवर्य श्रीविजयदानसूरि, गुजरात में नहीं थे किन्तु मरुदेश में बिहार कर गये थे । अत एव गुरु महाराज के दर्शन करने में उत्सुक भीहीरहर्षमुनि ने भी मरुदेश प्रति प्रस्थान किया । थोड़े ही दिनों में नारदपुरी, जहां श्रीविजयनदानसूरी

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