Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 37
________________ ३० . विजयप्रशस्तिसार । नाम का पंडित रहता था । उसको सूरि महोदय की यह कीर्ति बड़ी असह्य हुई । एक दिन ऐसाही हुआ कि इस नगर के समस्त श्री. संघ तथा श्रीमिश्र आदि अनेक अन्यमतानुयायी पखितों की सभा में श्रीविजयसेनसूरिका 'भीभूषण' पण्डित के साथ शास्त्रार्थ हुआ। कहना ही क्या है। शेर के सामने शृगाल कहां तक जोर कर सकता है ? थोड़े ही प्रश्नोत्तरों में श्रीभूरण, पण्डित, मूक हो. गए । प्राचार्य महाराज की बिजय हुई। श्रीभूषण पण्डित अनेक जैन पण्डित और ब्राह्मण पण्डितों की सभा में मूर्ख की तरह इसी के पात्र हुए । श्रावक वर्ग एवं नगर के और २ लोगों ने श्रीविजय नसूरि का अधिक सन्मान किया। . अब आप सुरत बन्दर में अनेक प्रकार से जैन धर्म की विजय पताका को फहराते हुए वहां से बिहार करके पृथ्वी तलको पावन करते हुए पुनः गुजरात के पत्तन नगर में पधारे और चातुर्मास यहां ही किया। पांचवा प्रकरण। . हा (श्रीहीरविजयसूरि और अकबरबादशाह का समागम, हीरविजयसूरि के उपदेश से अकबर बादशाह का __ 'अहिंसा' पर अनुराग होना और अपने राज्य . . में बारह दिन हिंसा कोई न करे इस प्रकार का फरमान पत्र लिखना इत्यादि ।) इस समय राजा अकबर, जो कि बड़ा प्रसिद्ध मोगल सम्राट होगया, राज्य करता था। इसकी मुख्य राजधानी 'मामा' नगर

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