Book Title: Vadsangraha
Author(s): Yashovijay Upadhyay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
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वीतरागाय नमः महोपाध्याय-श्रीमद्यशोविजयगणिसुदेशित ॥ कूपदृष्टान्त विशदीकरण-प्रकरणम् ॥
ऐन्द्रश्रीयत्पदाब्जे विलुठति सततं राजहंसीव यस्य, ध्यानं मुक्तेनिंदानं प्रभवति च यतः सर्वविद्याविनोदः । श्रीमन्तं वर्धमानं त्रिभुवन-भवनाभोग-सौभाग्य लीलाविस्फूर्जत्केवलश्रीपरिचयरसिकं तं जिनेन्द्रं भजामः ॥१॥ सिद्धान्तसुधास्वादी, परिचितचिन्तामणिर्नयोल्लासी । तत्व विवेक कुरुते न्यायाचार्यो यशोविजयः ॥२॥
तत्रेयमिष्टदेवतानमस्कारपूर्वकं प्रतिज्ञागर्भा प्रथमगाथानमिऊण महावीरं. तियसिंद-मंसियं महाभागं । विसईकरेमि सम्मं, दव्वथए कूवदिळंतं ॥१॥
व्याख्या-नत्वा महावीरं त्रिदशेन्द्रनमस्कृत, महाभागमहानुभावं, महती आभा केवलज्ञानशोभा तां गच्छति यः स तथा तमिति वा । विशदीकरोमि निश्चितप्रामाण्यकज्ञानविषय. तया प्रदर्शयामि । सम्यक् असम्भावना-विपरीतभावनानिरासेन । द्रव्यस्तवे, स्वपरोपकारजनकत्वानिर्दोषतया साध्ये इति शेषः । कूपदृष्टान्तं-अवटदृष्टान्तं, 'धूमवत्त्वादहिमत्तया साध्ये

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