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भाषांतर अध्य०१६
यन सूत्रम्
॥९१
DE | काळमां फळदायक छे; ए धर्म जिन तीर्थकरोये देशित प्रकाशित छे. आ वां विशेषणोथी आ शीलधर्भर्नु प्रामाण्य प्रकाशित कराय उत्तराध्य
छे. आ धर्मवडे बहुये जीवो भूतकाळमां सिद्ध थइ गया छे, हमणा पण वर्तमानमां पय सिद्धि पामे छे तथा एज ब्रह्मचर्य धर्मवढे
करीने भविष्य काळमां अपर बीजा पण अनागत अध्वा मार्गमां पण सिद्धिने प्राप्त थशे. आ अध्ययनमा वारंवार ब्रह्मचर्य समाधि॥९१६॥
स्थानो प्रकाशित कर्या तेम वारंवार दूषणो पण कह्यां ते आ शीलविषयमा अत्यंत आदर प्रकाशन करवा कडेवामां आवेल छे एमां पुनरुक्ति दोषनी संभावना करवानी नथी. 'एम हुँ बोलु ऐ आ छेटु वचन पण मुधर्मास्वामी जंबूस्वामी प्रत्ये कहे छे. १७
इति ब्रह्मचयेसमाधिस्थानानामध्ययनं षोडश संपूणे. ॥१६॥ इति श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रार्थदीपिकायामुपाध्यायश्रीलक्ष्मीकिर्तिगणीशिष्यश्रीलक्ष्मीबल्लभगणिविरचितायां ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं षोडश सपूर्ण. ॥ श्रीरस्तु ॥
ए प्रमाणे ब्रह्मचर्य समाधिस्थान नामक सोळमुं अध्ययन पूर्ण थयु एवी रीते उपाध्याय लक्ष्माकी तंगणाना शिष्य लक्ष्मीवल्लुभगणिये विरचित उत्तराध्ययनमुत्रनी अर्थदीपिका नामक वृत्तिमा सोळमुं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान नामर्नु अध्ययन संपूर्ण थयु.
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