Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 209
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्यपन सूत्रम् ॥१०६६ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थयो अवधिज्ञानथी ते पोतानुं वृत्तांत जाणतो हतो. एक समये नन्दीश्वर यात्रार्थ सर्वे देवो चाल्या त्यारे ते श्रावक देव पण अच्युत | देवेन्द्रनी साथे चाल्यो, आ बखते पेलो सोनी जे पंचशैलनो अधिपति थयो तेनुं नाम विद्युन्माली के ते देवना गलामां एक पटह= ढोल हतो तेणे नारवा मांड्यो पण उतरे नहीं ते जोड़ने दासा तथा महासाए कहां के पंचशैलद्वीपवासीनी आज स्थिति छे केनन्दीश्वरी यात्रार्थे ज्यारे देवेंद्रो चाले तेनी आगळ विद्युन्मालीदेव पटड वगाडता चाले माटे तगे खेद जरायम करो अने गळामां बांधेलो ढोल बगाडता आवो अने अमे बेय गान करशुं तेनी साथे नन्दीश्वरद्वीपे जवाशे. त्यारे तेणे ते प्रमाणे करतां नन्दी द्वीप भी सर्वे चाल्या. आ समये पेलो नागील श्रावक देव थयो छे तेणे आ सोनी = विद्युन्मालीने कचवातां कचवातां ढोल बगाडतो जोयो त्यारे तेने उपयोगवडे जाणी लइने कछु के-केम तुं मने जाणे हे?' आ सांभळळी सोनी बोल्यो के - ' शक्रादि देबोने कोण न जाणे ?' ते वारे श्रवकदेवे तेने पूर्व भवनुं रुप देखाडी सर्व वृत्तांत को तेथी ते देव संवेग पामी बोल्यो 'त्यारे हवे शुं करूं ?' श्रावक देवे कह्यु' के 'श्रीवर्द्धमानस्वामीनी प्रतिमां करावो जेथी तमारुं सम्यक्त्व सुस्थिर थाय. कछु छे के - 'रागद्वेष तथा मोह जेणे जीत्या छे एवा जिनोनी जे प्रतिमा करावे ते अन्यभवे सुख उत्पन्न करे तेवुं धर्म फल पामे छे. १ वळी पण क छे के-"जिनबिम्ब करावनारने दारिद्र्य, दौर्भाग्य' कुजाति, कुशरीर, कुगति, कुमति, अपमान, रोग तथा शोक, एमांनुं कथं न थाय. '२ ततः सविद्युन्माली महाहिमवच्छिखराट्रोशीर्षचंदनदारुं छेदयित्वा श्रीवर्धमानस्वामिप्रतिमां निर्वर्तितवान्, hi कालं प्रतिमा पूजिता, तत आयुःक्षये तां च मंजूषायां क्षिप्तवान् तस्मिन्नवसरे षण्मासान् यावदितस्ततो भ्रमद्वाहनं वायुभिरास्फाल्यमानं स विलोकितवान, तत्र गत्वा चासौ तमुत्पातमुपशामितवान, सांपात्रिकाणां च तां For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१८ ॥१०६६॥

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