Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 216
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagersuri Gyarmandir भाषांतर अध्य०१८ ॥१०७३॥ साधं नयसि तदाहमायामि, मान्यथेनि. ततस्तेन तत्स्थानस्थापनयोग्यान्यप्रतिमा तदानीं नास्तीति तस्यां रात्रौ नत्रोउत्तराध्य षित्वा स स्वनगरे पश्चाद्गतः, तत्र तादृशीं जिनप्रतिमा कारयित्वा पुनरवायातस्तां पतिमा नत्र स्थापयित्वा मूलप्रतिमां यन सूत्रम् | 38दासी च गृहीत्वोजयिनीं स गतः, ॥१०७३॥ एक समये ए कुब्जा दासीये-'हुँ मुवर्ण जेवा वर्णवाळी सुरुषा यार्ड' आq चिंतन करी एक गुटिका भक्षण करी तेथी ते सुवर्णRE! वर्णी सुरूपा बनी गइ अने ए दासीनुं त्यारथी सुवर्णगुलिका नाम पड्यु. वळी तेणीए एक वखते-'हुं विविध भोगसुखोने अनुभवू मा उदायन राजा तो मारा पिता तुल्य छे अने अपर राजा तो कोइ मारा समान रूपाळा नथी' आम विचार करती चंडप्रद्योत राजानुं मनमा ध्यान राग्वीने बीजी गुटिका भक्षण करी, त्यारे चंडपद्योत राजाने स्वप्नमां देवताए का के-'वीतभयपुरमा उदायन राजानी दासी सुवर्णगुलिका नामनी मुवर्णवर्णी अति रूपवती तमारा योग्यज छे.' राजा चंडमद्योते आ उपरथी सुवर्णगुलिका पासे दूत मोकल्यो. ते एकांतमा तेणीने मळीने का के-' अमारा स्वामी राजा चंडपद्योत तमने चाहे छे.' आ सांभळी दासीए का के--'प्रथम चंदप्रद्योत अहीं आवे तेने हुं जोउं पछी मारी मरजी प्रमाणे हुं तेनी साथे जइश.' आ वचनो दने जइनेज्यारे चंडप्रद्योतने कहां त्यारे ते पोताना अनलगिरि नामना हाथी उपर चडी रात्रनो त्यां आ यो तेने दासोए जोयो पटले तेने मन भाव्यो. आ सुवर्णगुलिकाए चंडपद्योत राजाने का के-'जो आ पतिमा साथे लीयो तो हुँ आवं; अन्यथा नहि. त्यारे ए मूर्तिने ठेकाणे मुकवा योग्य अन्य मृत्ति ते बखते हाजर नहीं होचाथी राजा ते रात्री त्यां रहीने पोताने नगर पाछो चाल्यो गयो. त्यां तेवीज बोजी मूर्ति तैयार करावी फरी पाछो दासी पासे आव्यो, त्यां पोते तैयार करावी लावेली जिनप्रतिमा मूकीने पेली गोशीर्ष चन्दनमतिमा For Private and Personal Use Only

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