Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उचराध्य
यन सूत्रम् ॥१०८४॥
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साधितभरतार्थो नंदनानुगतो राज्यश्रियं स्फीतामनुबभूव कालेन षट्पञ्चाशद्वर्षसहस्राण्यायुरतिवाह्य मृत्वा दत्तः पंचमनरकपृथिव्यामुत्पन्नः. नंदनोऽपि च गृहीतश्रामण्यः समुत्पादित केवलज्ञान: पंचषष्टिवर्षसहस्राणि जीवितमनुपालय मोक्षं गतः षड्विंशतिधनूंषि चानयोर्देहप्रमाणमासीत. इति काशीराजदृष्टांतः,
अत्रे काशीराजनुं दृष्टांत कही देखाडे छे - वाराणसी नगरीमां अग्निशिख नामे राजा हतो तेनी जयंती नामनी देवी पट्टराणी हती तेनी कूखथी नन्दन नामनो सातमो बलदेव उत्पन्न थयो अने तेनो नानो भाइ शेषवती राणीनो पुत्र दत्त नामनो वासुदेव थयो. ए दत्तने पिताए राज्य आप्यु तेथी तेणे नन्दननी मददथी भरतनुं अर्ध-अर्थात् त्रण खंड साधित करी उज्ज्वल राज्यलक्ष्मीने भोगवी छपन हजार वर्ष आयुष्य गाळी काळे करी दत्त राजा मृत थया ते पांचमी नरकभूमिमां उत्पन्न थया. नन्दनराजा पण श्रामण्य= साधुत्व अंगीकार करी केवळज्ञान पामी पांसठ हजार वर्ष पर्यंत जीवित भोगवी मोक्षे गया. ए बेय भाइओनु शरीरमान छवी धनुष हं. इति काशीराज दृष्टांत.
तयविजओ राया | आणठ्ठाकित्ति पब्वए || रज्जं तु गुणसमिद्धं गुणसमिद्धं । पहित्तु य महायसो ॥ ५० ॥ [तहेव विजओ०] तेज प्रमाणे वळी नाश पानी के अकीर्ति जेनी एवो तथा महायशस्वी राजा विजय-बीजो बलदेव गुण समृद्ध राज्यने परिहारी-त्यजीने प्रब्रजित थया. ५०
व्या०—हे मुने! तथैव विजयो नामा द्वितीयो बलदेवो राजा प्रब्रजितो दीक्षां प्रपन्नः किं कृत्वा ? राज्यं तु पहित्तु इति परिहृत्य, कीदृशं राज्यं ? गुणसमृद्धं गुणैः सप्तांगैः पूर्ण, स्वामी १ अमात्य २ सुहृत् ३ कोश ४ राष्ट्र
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भाषांतर
अध्य०१८
॥१०८४ ॥

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