Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie A भाषांतर अध्य०१८ ॥१०९४|| तथा बीजाओने दान दइने अनुग्रह करो. मनुष्यलोकना सत्कार तथा सन्मानोने स्वीकारो अने पछी परिव्रज्या लेजो.' महाबले उत्तराध्य-13 का-ए सबलु सुवर्णादिक वस्तु कह्यां ते कांतो राजग्राह्य अथवा अग्निग्राह्य के दायाद=भायातोना ग्रह्य थवाना अने कांतो नोकर पन सूत्रम् चाकरने हाथ पडवाना समजवा. वीजळी जेवा चश्चळ ए पदार्थोनो भोग कोइए लइ शकवानो नथी. माटे हुँ तो शीघ्र प्रव्रज्या ॥१०९॥ Bal इश. आम माता पिता बन्ने महाबळने विषय प्रवर्शक वाक्योवडे तो घरे राखी शक्या नहीं त्यारे हवे संयम उपर अभाव लाववा माटे आवां वचन बाल्या-'हे पुत्र ! आ निबन्ध मार्ग आचरवो घणो दुःखदायी छे, एमां तो लोढाना चव चाववाना छे, गंगाना प्रवाहने सामे जवानु छ, समुद्रने हाथी तरवो छे, बळता अग्निनी ज्वाळामां प्रवेश करवो छे, खड्गनी धारपर चालवानुं छे, हे पुत्र ! ए निर्ग्रन्योर्नु आधार्मिक बीजादि भोजन करवू पडशे; वळी हे पुत्र ! तुं तो बहु सुकुमाल छो अने सुख भोगववा लायक छो तेथी भूख, तरस, शीत, उष्ण, इत्यादि परोपह संबन्धी उपद्रवोने तुं सहन करवा समर्थ नथी. एमां तो बळी भूमि उपर मूवानुं केशन लुंचन करवानु, नवाय नहीं, माटे हे पुत्र! अमारा जीवता मूधी तो तु घरेज स्थिति कर.' त्यारे महाचल बोल्यो केए निम्रन्थमार्ग जे क्लीब होय जे व्हीकण होय वळी आ लोकमां बन्धाइ रह्या होय तथा परलोकथी विमुख होय तेवाओने तो खरेखर तमारा कहेवा प्रमाणे आचरवो दुष्कर छे पण जे वीर, निश्चित मतिमान् पुरुष होय तेने तो एमां क°य दुष्कर नथी माटे मने पव्रज्या लेवा अनुज्ञा आपो. अथ मातृपितृभ्यां तं गृहे रक्षयितुमशक्ताभ्यामवाञ्छयैव प्रव्रज्यानुमतिस्तस्य दत्ता. ततो बलराजा कौटुंबिकपाहस्तिनागपुरं बाह्याभ्यंतरे संमार्जितोपलिप्तं कारपति, तं महाबलं कुमारं च मातापितरौ सिंहासने समारोपयतः, AMACHANDOROADAALANAADAM For Private and Personal Use Only

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