Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥१०५७॥
भाषांतर अध्य०१८ ॥१०५७॥
अदृष्टभद्र-जेणे कोइ दिवस समृद्धिमुख जोयु पण न होय तेवा-नीच पुरुषो थोडाथी पण फूलाइ जाय छे अने मदमा आवी जाय छे. चीता पाट पढी जाय के जेमके मृषक उदर व्रीहि साजना कण देखा मोडे उचुं करी नाचवा मंडी जाय छे.'१ ___ अनेन शक्रेण प्राग्भवे शुद्धो धर्मः कृतः, तत ईदृशी ऋद्धिलब्धा, ततोऽहमपि तमेव धर्म करोमि, किं ममात्र विषादेन ? उक्तं च-समसंख्याश्यवः सन् । पुरुषः पुरुषं किमन्यमभ्येति ॥ पुण्यैरधिकतरं चे-मनु सोऽपि करोतु
तान्येव ॥१॥ इत्यादिसंवेगभावनया प्रतियुद्धः क्षयोपशम्प्राप्तचारित्रमोहनीयो भगवतंप्रत्येवं दशार्णभद्रोऽवादीत् , | भगवन् ! भवचारकादहं निविण्णोऽस्मि. ततश्चारित्रप्रदानेनानुग्रह मम कुरु? भगवता तदानीमेव मदहरणेन समं सब दशार्णभद्रो दीक्षितः, शक्रेण तदा वंदितः, उक्तं च श्रमणमार्गग्रहणेन त्वयैव जितं, येनेदृशी ऋद्धिः सहसा परित्यक्ता. पूर्व त्वयाऽभिमानग्रस्तेन द्रव्यवंदनं कृतमिति त्वमेव धन्यो नाहमिति दशार्णभद्रमुनेः प्रशंसां कृत्वा शक्रः स्वस्थानं गतवानिति दशार्णभद्रदृष्टांत: ११ ____ आ शक्र=इन्द्रे पूर्व भवमां शुद्ध धर्म पाळेल के तेथी तेने आवी ऋदिनी लब्धि थइ छे तो हुपण तेबोज धर्म करुं आ बाबत मारे खेद कर्ये शृंथवार्नु हतु ? कह्युछे के-पुरुष, समान संख्याना अवयवोवाळो होवा छतां बीजा पुरुष पासे केम जतो हो ? कदाच जे धनवान पुरुष पासे दरिद्र पुरुष जाय त्यारे एम माने के-धनवाने पुण्य करेल के तेथी ते श्रेष्ठ बन्यो छे तो ते दरिद्रे पण तेवा पुण्यकर्मो करवा. १, इत्यादिक संवेग भावनाकरवाथी प्रतिबुद थइ क्षयोपशमबडे चारित्रमोहनीय प्राप्त थवाथी राजा दशार्णभद्र भगवान पत्ये एम बोल्या के-'हे भगवन् ! हुं आ भवना फेराथी निर्विष्ण-कंटाळ्यो-छु माटे मने चारित्र प्रदान करीने
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