Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्य
यन सूत्रम्
॥ १०५८।।
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आप मारो अनुग्रह करो.' तेज क्षणे भगवाने पेला साथै आवेला मदहर सहित दशार्णभद्रने दीक्षा दीघी त्यारे शक्रे तेने बन्दन अनेक के श्रमणमार्गनुं ग्रहण करीने तमे जीत्या के जेणे आवी समृद्धिनो सहसा परित्याग कर्यो. प्रथम तमे अभिमानग्रस्त न द्रव्यवन्दन कतु अने हवे प्रव्रज्या स्वीकारी भाववंदन कर्यु तेथी तमे धन्य छो. हुं तमारा तुल्य नथी. एवी रीते दशार्णभद्रमुनिनी प्रशंसा करी शक स्वस्थाने सीधाव्या. इति दशार्णभद्रनुं दृष्टांत, (११)
नमी नमेइ अप्पाणं । सक्खं सक्केण चोइओ ॥ चइऊण गेहं वैदेही । सामण्णे पज्जुबढिओ ||४५ || [नमी०] वैदेही-विदेह देशना राजा नमि आत्माने नमावी साक्षात् शक्र इन्द्रे प्रेर्या तेथी ग्रहने त्यजीने श्रामण्य= साधुत्वमां स्थित था. ४५
व्या० - पुनर्हे मुने ! विदेहेषु देशेषु भवो वैदेही, विदेहदेशस्वामी नमिनामा नृपो गेहं गृहवासं त्यक्त्वा श्रामयं साधुध पर्युपस्थितः, चारित्र्योग्यानुष्ठानं प्रत्युद्यतोऽभूदित्यर्थः पुनः स मुनिः साक्षाद्ब्राह्मणरूपेण शक्रेण प्रेरितः सन् ज्ञानचर्यायां परीक्षितः सन्नात्मानं नमेइ इति नये स्थापयति, क्रोधादिकषायरहितो भवतीत्यर्थः ॥ ४५ ॥ अथ द्वाभ्यां गाथाभ्यां चतुर्णां प्रत्येकबुद्धानामेकसमये सिद्धानां नामान्याह -
हे मुने ! वैदेही विदेह देशना स्वामी नमि नामे राजा गृहवास त्यजीने श्रामण्य= साधुधर्मने प्राप्त थया. चारित्र योग्य अनु. ठानमा उक्त थया. बळी ते मुनि साक्षात् ब्राह्मणनुं रूप लइ आवेला शक्रे प्रेरित थइ ज्ञानचर्चानी कसोटीमां पार उतरी आत्माने नयमां स्थापित कर्यो - अर्थात् क्रोधादि कषायरहित थया. ४५, हवे बे गाथावडे चारेप्रत्येक बुद्धो के जे एकज समये सिद्ध थया छे, तेओनां नामस्थानादि निर्देश करे छे.
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भाषांतर
अध्य०१८
।। १०५८॥

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