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उतराध्य
पन सूत्रम् ॥१००९ ॥
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अहिं शांतिनाथनुं दृष्टांत कहे हम जंपा भरतक्षेत्र ने विषये वैताढ्य पर्वत उपरे स्थनूपुरचक्रवाल नामनुं नगर छे त्यां आमततेजाः नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेनी सुतारा नामी व्हेन हती ते पोतनाधिपति श्रीविजय राजाने पग्णावी हती. एक समये राजा अमिततेजा पोतानी बहेन सुतारा तथा कहनेवी श्रीविजय राजाने मळवा पोतनपुर गया, त्यां नगरमां सर्वत्र ध्वजा पताका चडावेला हता अने आखं नगर प्रमुदित दीहूं, राजकुळमां तो विषेष उत्सव जेर्बु जोयु. राजा अमिततेजा विस्मययुक्त नेत्री आ जोइ गगनतलथी उतरीने राजभुवने गया. श्रीविजयरामाए अभ्युत्थान=उठीने सामा आवारे मानथी सत्कारपूर्वक उचित आवकार आप्यो, सिंहासन उपर बेठा त्यारे अमिततेजा राजाए श्रीविजयराजने नमरना उत्सवनुं कारण पूछयुं श्रीविजय राजा बोल्या के 'आजथी आठ दिवस पहेला मारी पासे एक नैमित्तिक=निमित्त उपरथी भविष्य भांखनार= आव्यो हतो तेने में सिंहासन उपर बेसाडी आववानुं प्रयोजन पूछयुं त्यारे तेणे कछु के- 'हे महाराज ! में कंह निमित्त उपरथी जायुं केपोतनपुरना अधिपति उपर आजथी सातमे दिवसे मध्य समये वीजळी पडशे.' आवुं कानने कडधुं लागे तेवु वचन सांभळी मारा मंत्रीए तेने कांके - ' ते वखते तारा उपर शुं पडशे ?' त्यारे आ नैमित्तिक बोल्यो के- 'कोप मा करो. में तो जेवु ं निमित्त जायुं
तमारी आगळ, मारे तमारा उपर कंद पण भावदोष नथी, मारुं पुछो छो तो ते दिवसे मारा उपर तो सुवर्णनी दृष्टि पडशे.' में लेने क के आयु निमित्त तमे क्यां जाण्यु ? त्यारे ते बोल्या के त्रिपृष्ठ बासुदेव तथा अचळ वळदेवना दीक्षा समये पितानी साथे में पण पत्रज्या ग्रहण करी. त्यां अनेक शास्त्रोना अध्ययन करतां हुं अष्टांगनिमित्त शास्त्र पण भण्यो. तदनंतर मने यौवन प्राप्त थ ु त्यारे मने पूर्वे आषेली कन्याना भाइओये प्रब्रज्या छोडावी अने मारा कर्मना परिणामने वश थइ हूं ते कन्याने
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भाषांतर
अध्य०१८ ॥१००९ ॥