Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अचराध्यपन सूत्रम् ॥१०५०॥
भाषांतर अध्य०१८ ॥१०५०॥
الي حالتها السلطه التاليه فيها فقالتحالف الطالفقيه الحقيقية
| क्रमेण संसाधितभरतश्चक्रीं जातः, राजश्रियमनुभुवन भोगेभ्यो विरक्तो जातः, एवं च चिंतितवान-सुचिरमपि
उषित्वा स्यात् प्रियविप्रयोगः । सुचिरमपि चरित्वा नास्ति भोगेषु तृप्तिः ॥ सुचिरमपि सुपुष्टं याति नाशं शरीरं । | सुचिरमपि विचित्यो धर्म एकः सहायः ॥ १॥ पवं संवेगमुपागतो निष्क्रांतोऽनुक्रमेण सिद्धा. द्वादशधनुर्देहमानो वर्षसहस्रायुश्चेष आसीदिति जयचक्रीदृष्टांतः. ११ ।
अहीं जय चक्रवर्तीनुं दृष्टांत कहे छे-राजगृह नगरमां वपा नामनी राणीनी कुंखे चतुर्दश स्वप्न सूचित जय नामनो पुत्र जन्म्यो. क्रमे क्रमे भरतक्षेत्रनुं प्रसाधन करी चक्रवर्ती थयो. राजलक्ष्मीना वैभवो अनुभवतां भोभ भोगवाथी विरक्त थयो. एम विचायु के-"लांबा काळ सुधी जीवी निवास करीये तो पण प्रियजनोथी वियोग तो थवानो, तेम चिरकाळ पर्यंत भोग सेवाये तो पण दृप्ति नहींज थवानी. वळी आ शरीरने घणा समय सुधी पोषीए तो पण ते नाश तो पामवानुज, पण दीर्घ समय पर्यंत पाळेलो धर्म एकज अंते सहाय थवानो" आम चिंतन करतां संवेग पामी नीकल्या अने अनुक्रमे सिद्धि पाम्या. आ जयचक्रीन देहमान द्वादशवनुपर्नु हतु अने हजार वर्ष आयुष्य भोगव्यु. अगीयारमा जयचक्रीनुं दृष्टांत पूर्ण थयु.
दसण्णरजं मुइयं । चहत्ताणं मुणी चरे ॥दसण्णभद्दो निक्खतो । सक्खं सक्केण चोइओ ॥५४॥ [दसणं०] साक्षात् शक्र-इन्द्रे प्रेरित दशार्णभद्र राजाए मुदित आनन्द देनाएं दशार्ण देशचें राज्य त्यजीने नीकल्या अने मुनि-दी|| क्षित था विचर्या. ४४
व्या-दशार्णभद्रो राजा साक्षात् शक्रेण चोदितः प्रेरितः सन् निष्क्रांतः, गृहस्थावस्थातो निःसृतः. पुनमौनी
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246