Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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भाषांतर अध्य. ॥१.२२॥
१८
सागरोपमस्थितिकावहमिंद्रदेवी जातो. अहमिंद्रसौख्यमनुभूय ततश्च्युताविहेव जंबुद्धीपे पूर्व विदेहे पुष्कालावतीउचराध्य
विजये पुंडरीकिण्यां नगर्या घनरथो राजा, तस्य दे महादेव्यो पद्मावती मनोरमती च. तयोर्गर्भ जातौ बनायुधो यन सूत्रम् 16 मेघरथः सहस्रायुधो दृढरपति वृद्धिं गतो. ततः कृतं ताभ्यां कलाग्रहणं, तो दो राज्ये स्थापयित्वा घनरथः स्वयं दीक्षां ॥१०२२॥ गृहीत्वा केवलज्ञानमुत्पाद्य तीर्थकरो जातः तयोर्मेघरथहदरथयोः पूर्वभवाभ्यासतो जिनधर्मदज्ञताभूत. अधिगतजीवा
| जीवादिभावौ तौ सुश्रावको जातो.
| अन्यदा वज्रयुध पिता तथा सहस्रायुध पुत्र बन्नेने वैराग्य उत्पन्न थवाथी सहस्रायुधना पुत्र बलिने राज्याभिषिक्त करीने RBELI पेय पितापुत्रे क्षेमंकर गणधर पासे जइ प्रव्रमित दीक्षित थया. पव्रज्या नियमोनुं यथावत् परिपालन करी पादपोपगमन विधिवडे
काळ करी बेय जणा उपरितन ग्रेवेयकमा एकत्रीश सागरोपम स्थितिवाळा अहमिंद्र देव थया. अहमिंद्र देव दशामा मुखो अनुभवीने RE| स्याथी क्यवीने, अहींज जंबूद्वीपमा पूर्व विदेहने विषये पुष्कलावती विजयमां पुंडरीकिणी नगरीमा घनरथ राजानी पद्मावतो तथा | मनोरमती नामनी चे महाराणाओना गर्भथी वज्रयुध मेघरथ, तथा सहस्रायुध हारथ, अनुक्रमे पुत्र उत्पन्न थया अने अदाडे वृद्धि पाम्या. अनेक कलाओगें शिक्षण लइ युवान थया त्यारे चेयने राज्यपद उपर स्थापी घनरथ राजा पोते दीक्षा ग्रहण करीने केवळज्ञान उत्पन्न थतां तीर्थकर थया. ते मेघरथ तथा दृढरथने पूर्व भवना अभ्यास बळ्थी जिनधर्ममा दक्षता थइ अने जीच अजीव आदिक भावनुं सम्यक् शान थतां ते बन्ने उत्तम श्रावक थया.
अन्यदा पितुस्तीर्थकरस्य समीपे दावपि जनौ निजपुत्रं राज्येऽभिषिच्य प्रबजितो. तत्राधीतसूत्रार्थेन मेघरथेन
التعلم فن ما فوت فن دو حالتها الهدا
القياياللا نتحالفالفا بالتقاليد السلسالمية
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