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उत्तराध्यपन सूत्रम् ॥१०२४॥
भाषांतर अध्य०१८
॥१.२४॥
अंगमूत्रोनुं अध्ययन कर्यु क्या वीश स्थानकोना आराधनवडे तीर्थकर नाम गोत्र संपादन कर्यु. दृढरथे पण शुद्ध चारित्र ग्रहण करी यथावत् आराध्यु. चेय भाइओ संलेखना विधिथी काळ करी अनुत्तरोपपातिक देवोमा उत्पन्न थया. त्यां सर्वार्थसिद्ध विमानने विषये अनर्गल मुखोनो अनुभव करी मेघरथ कुमार, त्यांथी च्यवोने अहींज जंबूद्वीपमा भारत क्षेत्रने विषये इस्तिनागपुरमा विश्वसेन राजानी अचिरादेवी नामनी राणीनी कुखे भाद्रपद कृष्णसप्तमी दिने चतुर्दश स्वमवडे मूचित पुत्रभावे उत्पन्न थया. कंडक अधिक नवमास पर्यन्त अचिरादेवीए पोताना उदरमा धारण करी ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशीने दिवसे तेने जन्म आप्यो. छप्पन दिककुमारीओनी महोत्सब ययो तथा चौसठ सुरेन्द्रोए पण आवीने उचित समये जन्माभिषेक कर्यो. आ भगवन् गर्भमां इता त्यारे सर्व देशोमां शांति थइ तेथी तेनुं माता पिताए "शांति" एवु नाम राख्थु. आ वाळक क्रमे क्रमे सर्व कळाभोमां शिक्षण पामी कुशळ थया. एम करता यौवनावस्थामां आवतां श्रेष्ठ राजाओनी कन्याओ तेने परणाववामां आवी. पुत्रने लायक गणी पिताए तेने राज्य उपर | स्थापित करी पोते चारित्र ग्रहण कयु. शांतिने चक्रवर्ति पदवी संप्राप्त थइ एटले चउद रत्नो उत्पन्न थयां अने भरतक्षेत्रनुं साधन करी अखंड खंडनु राज्य परिपालन करी उचित अवसरे, स्वयं संबुद्ध हताज तथापि लोकांतिक देवोए प्रतिबोधित कयाँ एटले सांवत्सरदान दइ ज्येष्ठमासनी कृष्ण चतुर्दशी दिने चक्रिभोगोनो त्याग करी बहार नीकल्या. चारे ज्ञानथी समन्वित विहार करवामां उद्यत रहेता ए शांतिने पौष मासनी शुक्ल नवमी दिने केवळज्ञान उत्पन्न ययु. देवोए समवसरण कयु. भगवाने धर्मदेशना प्रारंभी, गणधरीने प्रव्रज्या धारण करावी. घणा प्राणियोने मतिबोधित कर्या. क्रमे हरी विहार करता भारतक्षेत्रमा बोधिबीज वाचोने क्षीण थयेक के सर्व कर्माश जेना एवा थइ ज्येष्ठ मासनी कृष्ण प्रयोदशी दिने मोक्षे गया. आ शांतिनाथ भगवान्ना कुमारपणामां
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