Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandi ی उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥१००७|| भाषांतर अध्य०१८ ॥१००७॥ ربيع قليلة التاليها وانا قلقل दशामां-एक लाख वर्षः एम कुल प्रण लाख वर्ष परिपालन करी समेतशैलना शिखर उपर गया त्या शिलातल उपरे आलोचना विधानपूर्वक मासिक भक्तवडे काळ करी सनत्कुमार कल्पने विषये देव मावे उत्पन्न थया. त्यांथी च्यवीने महाविदेह वर्षमांसिद्धि पामशे. आ प्रमाणे सनत्कुमार दृष्टांत कहेवामां आव्यु. चइत्ता भारहं वासं । चक्कवट्टी महडिओ ॥ संती मंतिकरे लोए । पत्तो गइ मणुत्तरं ॥ ३८ ॥ | (चइत्ता०) महोटी ऋद्धिवाळा तथा लोकमां शांति करनारा चक्रवर्ति शांति-शांतिनाथ, भारतवर्षने त्यजीने अनुत्तम गति पाम्या. ३८ व्या०-पुनः शांतिः शांतिनाथः प्रस्तावात्पंचमश्चक्री अनुत्तरां गतिं प्राप्तो मोक्ष प्राप्तः, कथंभूतः शांनिः? लोके शांतिकरः, शांति करोतीति शांतिकरः, इति विशेषणेन तीर्थ दूरत्वं प्रतिपादितं. षोडशस्तीर्थकरः शांतिनायो मोक्ष जगामेत्यर्थः. किं कृत्वा ? भारतं बासं त्यक्त्वा, भरतस्येदं भारत, भरतक्षेत्रसंबंधिवासमिति राज्यवासं. कीदृशः शांतिः ? चक्रवर्ती महद्धिकः, इत्यनेन शांतेचक्रवर्तित्वं तार्थकरत्वं च प्रतिपादितं. ॥ ३८॥ पुनः शांति शांतिनाथ, ( चक्रवर्तीनो प्रस्ताव चाले छे नेथी आ पांचमा चक्रवर्ती ) अनुत्तर गतिने प्राप्त थया मोक्षे गया. शांति केवा ? लोकमां शांति करनारा, आ विशेषणथी तेनु तीर्थङ्करपणु प्रतिपादन कर्यु सोळमां तीर्थङ्कर शांतिनाथ मोक्षे गया एम अर्थ जणाब्यो. केम करीने ? भारत भरतक्षेत्र संबंधि वास=राज्यवासने त्यजोने. केवा शांति ? महोटी ऋद्धिवाळा; आ विशेषणथी चक्रवर्तीत्व तथा तीर्थङ्करत्व प्रतिपादन कयु. ३८ अत्र शांतिनाथदृष्टांत:-इहैव जंबुद्धीपे भरतक्षेने वैताव्यपर्वते रथनपुरचक्रवालं नाम नगरमस्ति. तत्र राजाऽमि For Private and Personal Use Only

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