Book Title: Upnishad Vakya Mahakosha Part 2
Author(s): Gajanand S Sadhale
Publisher: Rupa Books Jaipur

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Page 272
________________ ६१४ स आगच्छ उपनिषद्वाक्यमहाकोशः स ईक्षत - - समागच्छति तिल्यं वृक्षं तं स इतः प्रयन्नेव पुनर्जायते तस्य ब्रह्मगन्धः प्रविशति को. त. ११५ तृतीयं जन्म २ऐत. ४४ सभागच्छत्यारं हां स इत्येकमक्षरं, तीत्येकमक्षरं, तन्मनसाऽस्येति कौ. . १६४ यमित्येकमक्षरं, प्रथमोत्तरेऽक्षरे समाजगाम गौतमोयत्रप्रवाहणस्य सत्यं मध्यतोऽनतं तदेतदमृतजैबलेरास वृह. ६।२।४ मुभयतः सत्येन परिगृहीत समाजगाम जैबलि प्रवाहणं सत्यभूयमेव भवति बृह. ५।५।१ परिचारयमाणं... बृह. ६।२।१ ___ स इत्ये कमेव परं ब्रह्म विभ्राजते समात्मन्येवात्मानं परब्रह्म पश्यति नृसिंहो. ६३ निर्वाणम त्रि. ता. ५।१ समात्मा तत्त्वमसि [छांदो. ६८७+९।४+ स इदं विश्वं भुवनं विचष्टे ३ऐत. ११६७ [१०१३+१११३+१२।३+ १३।३+१४।३ सइदं सर्वमभ्यपवयत यदिदं कि च १ ऐत. २।२।४ [+१५/३+१६३ स इदं सर्व पाप्मनो त्रायते सवात्मानमभिध्यायन् बद्दी; ___ यदिदं किञ्च १ ऐत. २०१६ प्रजा असृजत् मैत्रा. २।६ स इद" सर्वमभिप्रागाद्यदिदं किञ्च १ऐत. २।२।३ सखात्मा परमेश्वरः महो. ४।११८ स इन सर्व भवति बृह. ११४।१० स आत्मा प्रजापते: सभां वेश्म स इदं सर्व मध्यतो दध प्रपद्ये यशोऽहं भवामि छांदो. ८।१११ ___ यदिदं किञ्च १एत. २।२२ स भात्मा स विज्ञेय ईश्वरग्रास स इदं सर्व स मे ददातु चित्त्यु. ७४ स्तुरीयः नृसिंहो. १६ स इदित्था बोभवीदाशयध्यै बा. मं. १८ सआत्मासविज्ञेयः[माण्डू.७+नृ.पू.४।२ गमो. २।४ स इद्देवो ऋतमन्व (?त्य) यन्तं स आत्मा विज्ञेयः गणेशो. ५७ प्रभीमकर्मातपसोऽपविद्धात् वा. मं. ४ स आदित्यस्तदेतदोजोऽन्नाद्यमि स इन्द्रः स इन्दुः स सूर्यः स त्युपासीत छांदो. ३११३६१ वायुः सोऽग्निः स ब्रह्मा समादित्य स वैश्वदेवर अयम् (गणेशः) गणेशो. २१ ___सामाभिगायति छां. २।२४।११ स इममेवात्मानं द्वेधाऽपातयत्... बृह. १।४।३ स आदित्यः कस्मिन्प्रतिष्ठित स इमॉल्लोकानसृजत ( परमात्मा) २ ऐत. १२२ ___ इति चक्षुषीति बृह. ३।९।२० स इरामयो यद्धीरामयस्तस्मास आदित्येन चक्षुषा भाति द्धिरण्मयः १ ऐत. ११३६१ च तपति च छांदो. ३।१८।५ स इह कीटो वा पतलो वा शकुनि. समादित्यो विष्णुश्चेश्वरश्च ब्रह्मो. ३ र्वा शार्दूलो वा सिंहो वा मत्स्यो समादिनारायणोऽहमेव त्रि.म.ना. ८६ वा परः श्वा पुरुषो वाऽन्यो स आद्यः सोऽक्षरः सोऽनन्त: वैतेयु स्थानेषु प्रत्याजायते... कौ. त. श२ सोऽव्ययो महान्पुरुषः गणेशो. २।४ स ईक्षत कतरेण प्रपद्या इति २ ऐत. ३.११. स बापः प्रदुघे उभे इमे अन्त स ईक्षत कथं विदं मदृते म्यादिति २ ऐत. ३१११ रिक्षमथो सुवः महाना. ११९ | स ईक्षत यदि वाचाऽभिव्याहतं समाप्तोर्या मेण सर्वैः क्रतुभिर्यजते ग. शो. ५।३। यदि प्राणेनाभिप्राणितं...यदि समायुर्यश.कार्तिज्ञानेश्वर्यवान्भवति न. पू. ११३ शिश्न विमृष्टमय कोऽहमिति २ऐत. ३।११ स बाहादाक्षमिति तत्सत्यं भवति बृह. ४।१।४ स ईक्षत लोकान्नु मुना इति २ऐत. ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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