Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्तावना
मनन और चिन्तन करके, अपने आचरण को शुद्धभाव रूप में परिणमित कर लिया, और वह सन्मार्ग पर पा लिया, तो मैं अपने इस परिश्रम को सफल हुआ मानूंगा।' संस्कृत भाषा एवं साहित्य का विकास-क्रम
'सम्' उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु से निष्पन्न शब्द है--'संस्कृत' । जिसका अर्थ होता है – 'एक ऐसी भाषा, जिसका संस्कार कर दिया गया हो ।' इस संस्कृत भाषा को 'देववाणी' या 'सुरभारती' आदि कई नामों से जाना/पहिचाना जाता है । आज तक जानी/बोली जा रही, विश्व की तमाम परिष्कृत भाषाओं में प्राचीनतम भाषा 'संस्कृत' ही है। इस निर्णय को, विश्वभर का विद्वद्वन्द एक राय से स्वीकार करता है।
भाषा-वैज्ञानिकों की मान्यता है कि विश्व की सिर्फ दो ही भाषाएं ऐसी हैं, जिनके बोल-चाल से संस्कृतियों/सभ्यताओं का जन्म हुआ, और, जिनके लिखने/ पढ़ने से व्यापक साहित्य वाङमय की सर्जना हुई। ये भाषाएं हैं--'आर्यभाषा' और 'सेमेटिक भाषा'। इनमें से पहली भाषा 'आर्यभाषा' की दो प्रमुख शाखाएं हो जाती हैं--पूर्वी और पश्चिमी । पूर्वी शाखा का पुनः दो भागों में विभाजन हो जाता है । ये विभाग हैं--ईरानी और भारतीय ।
ईरानी भाषा में, पारसियों का सम्पूर्ण मौलिक धार्मिक साहित्य लिखा पड़ा है । इसे 'जेन्द अवेस्ता' के नाम से जाना जाता है। भारतीय शाखा में 'संस्कृत' भाषा ही प्रमुख है। जेन्द अवेस्ता की तरह, संस्कृत भाषा में भी समग्र भारतीय धार्मिक साहित्य भरा पड़ा है। आज के भारत की सारी प्रान्तीय भाषाएं, द्रविड़ मूल की भाषाओं को छोड़ कर संस्कृत से ही निःसृत हुई हैं । संस्कृत, समस्त आर्यभाषाओं में प्राचीनतम ही नहीं है, बल्कि, उसके (आर्यभाषा के) मौलिक स्वरूप को जानने समझने के लिये, जितने अधिक साक्ष्य, संस्कृत भाषा में उपलब्ध हो जाते हैं, उतने, किसी दूसरी भाषा में नहीं मिलते ।
__ पश्चिमी शाखा के अन्तर्गत ग्रीक, लैटिन, ट्यूटानिक, फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी आदि सारी यूरोपीय भाषायें सम्मिलित हो जाती हैं। इन सब का मूल उद्गम 'आर्यभाषा' है।
संस्कृत भाषा के भी दो रूप हमारे सामने स्पष्ट हैं--वैदिक और लौकिक, यानी लोकभाषा । वैदिक संहिताओं से लेकर वाल्मीकि के पूर्व तक का सारा साहित्य वैदिक भाषा में है। जब कि वाल्मीकि से लेकर अद्यन्तनीय संस्कृत रचनाओं तक का विपुल साहित्य 'लौकिक संस्कृत' में गिना जाता है, यही मान्यता है विद्वानों की।
१. उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा-प्रथम प्रस्ताव, पृष्ठ १०३
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