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बनता है । हंसना, रोना, सुबकना, चिल्लाना, उबासी एवं उच्छ्वास आदि मनोभाव श्वसन के सहारे के बिना मूर्त नहीं हो सकते । इससे भी बढ़कर महत्वपूर्ण बात यह है कि निराशा, भय, क्रोध, तनाव आदि मानसिक उद्वेग श्वसन को सीधे प्रभावित करते हैं । इसके विपरीत यदि हम श्वसन को नियंत्रित करना सीख लें तो इन उद्वेगों पर भी सफलतापूर्वक नियंत्रण पाया जा सकता है ।
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इस प्रकार श्वसन एक अनैच्छिक क्रिया है जो स्वतः सम्पन्न होती रहती है परन्तु इस क्रिया कि सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह एक ऐच्छिक क्रिया भी है । इसे हम अपनी इच्छानुसार तीव्र, मन्द, बन्द, दीर्घ, लघु भी कर सकते हैं इसको समझने के लिए हमें फेफड़ों की कार्यप्रणाली को समझना जरुरी है । वास्तव में यह अत्यन्त मनोरंजक लग सकता है कि हृदय की तरह स्वयं क्रियाशील न होते हुए भी ये निष्क्रिय फेफड़े कैसे अपने आप हवा से भर जाते हैं और कैसे खाली हो जाते हैं । इनके संचालन में सर्वाधिक मददगार है डायफ्राम । डायफ्राम एक प्रत्यास्थ गुम्बदाकार मांसपेशी है । जिसे छाती व पेट के बीच की चलित विभाजन रेखा कह सकते है । दायीं तरफ यह यकृत पर एवं बाईं ओर पेट, प्लीहा तथा बायें गुर्दे पर स्थिर रहता है । डायफ्राम का संचालन मस्तिष्क के निम्न भाग मेड्यूला से होता है । मेड्यूला में उन अलग अलग दोनों क्षेत्रों का पता लगाया गया है जहां से श्वास लेने और छोड़ने अर्थात् श्वास और प्रश्वास के लिए संकेत या स्पन्दन नाड़ी तन्त्र के माध्यम से मिलते है । वास्तव में सामान्यतः मस्तिष्क ही अपने आप रक्त में ऑक्सीजन की आवश्यकता के अनुसार, इस क्रिया को संचालित करता है ।
जब श्वास लेना होता है तो मस्तिष्क से डायफ्राम व छाती गुहा की अन्य सहायक मासपेशियों को स्पन्दन प्राप्त होते हैं। इससे डायफ्राम संकुचित हो जाता है । तथा उसका गुम्बद छोटा अर्थात नीचा हो जाता है । इससे तथा दूसरी मांसपेशियों की क्रिया से बन्द छातीगुहा का आयतन बढ़ जाता है और उसमें आंशिक निर्वात उत्पन्न हो जाता है । यदि इस समय ऊपरी श्वसन अंग खुले हों तो हवा इस निर्वात को खत्म करने के लिए फेफड़ों के वायुकोशों में दौड़ पड़ेगी । इन प्रकार फेफड़े फूलकर ताजा हवा से भर जाएंगे ।
डायफ्राम को संकोच के लिए मेड्यूला से लगभग दो सैकिण्ड के लिए स्पन्दन मिलते हैं। इसके बाद लगभग ३ सैकिण्ड तक के लिए मेड्यूला का यह क्षेत्र निष्क्रिय हो जाता है और डायफ्राम व छाती की अन्य मांसपेशियां अपनी प्रत्यास्थता के कारण पूर्व स्थिति में आने लगती है ।
डायफ्राम के ऊपर उठने पर छातीगुहा का आयतन कम हो जाता है जिससे फेफड़ों के चारों ओर दाब आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे फेफड़ों के अन्दर की वायु का दाव बाहर की वायु के दाब से अधिक हो जाता है । परिणामस्वरूप फेफड़े सिकुड़ जाते हैं और उनकी हवा बाहर निकल जाती है । सार यह है कि डायफ्राम के सिकुड़ने से उत्पन्न निर्वात के कारण श्वास की तथा उसके पूर्व स्थिति में लौटने से बढ़े दाब आधिक्य के कारण प्रश्वास की क्रिया सम्पन्न होती है ।
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तुलसी प्रज्ञा
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