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जिनागमों की मूल भाषा पर संगोष्ठी
'प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी', 'प्राकृत विद्या मंडल' और 'प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड' नाम की तीन संस्थाओं के संयुक्त तत्त्वावधान में तथा जैनाचार्य श्री सूर्योदय सूरीश्वरजी और श्री शीलचन्द्रसूरिजी की पावन निश्रा में (अहमदाबाद के सेठ हठीसिंह, केसरीसिंह वाडी के भव्य जैन मंदिर के परिसर में "जैन आगमों की मूल भाषा" संबंधी एक विद्वत् संगोष्ठी दिनांक २७-२८ अप्रैल, १९९७ को आयोजित की गयी।
भगवान महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपने धर्मोपदेश दिये थे और उनके आगम ग्रंथ भी मूलत: अर्धमागधी भाषा में ही रचे गथे थे यह तथ्य इतिहास और जैन आगमों में प्राप्त प्रमाणों से स्वतः सिद्ध है । भारतीय एवं जर्मन विद्वानों की डेढ सौ वर्षों की आधुनिक तरीके की संशोधन पद्धति से भी यह तथ्य सिद्ध हो चुका है और आज तक इस मुद्दे पर किसी प्रकार का विवाद या मतभेद उपस्थित नहीं हुआ।
अभी अभी दो एक वर्षों से जैन धर्म की एक शाखा दिगम्बर संप्रदाय के कतिपय मुनिवरों और अमुक विद्वानों द्वारा ऐसा मत प्रस्थापित करने का जोरदार प्रयत्न किया जा रहा है कि भगवान् महावीर और उनके आगमों की भाषा अर्धमागधी प्राकृत नहीं परन्तु शौरसेनी प्राकृत थी।
___ इस नये अभिगम और मतभेद का प्रामाणिक मूल्यांकन तथा परीक्षण करना अत्यन्त अनिवार्य बन गया था । इसीलिए इस विद्वत्-संगोष्ठी का आयोजन आचार्यश्री की प्रेरणा से करने में आया ।
दो दिन की इस संगोष्ठी में स्थानिक और भारत के विविध स्थलों से आगत विद्वानों के द्वारा १३ शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये । इसमें विश्व-विख्यात विद्वान जैसे कि पं० दलसुखभाई मालवणिया, डॉ० हरिवल्लभ भायाणी, डॉ. मधुसूदन ढांकी, डॉ. सागरमल जैन, डॉ० सत्यरंजन बनर्जी एवं डॉ० रामप्रकाश पोद्दार, डॉ० एन. एम. कंसारा, डॉ० के० रिषभचन्द्र, डॉ. रमणोक शाह, डॉ. भारती शैलत, डॉ. प्रेमसुमन जैन, डॉ. जिनेन्द्र शाह, डॉ. दीनानाथ शर्मा एवं कु. शोभना शाह ने भाग लिया और इसके सिवाय अन्य चालीसेक विद्वानों ने संगोष्ठी की चर्चा में सक्रिय भाग लिया। तेरापन्थ की समणी चिन्मयप्रज्ञा जी भी इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए लाडन से खास तौर पर पधारी थीं।
____ संगोष्ठी की प्रथम बैठक दिनांक २७ को प्रातः सार्वजनिक सभा के रूप में हुई। इस समारोह में अतिथि विशेष के रूप में विख्यात श्वेताम्बर जैन समाज के अग्रणी सेठ श्री श्रेणिक भाई कस्तूर भाई तथा आन्तरराष्ट्रीय पुस्तक प्रकाशक मोतीलाल बनारसी दास (दिल्ली) के श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मुंबई से सेठ श्री प्रताप भाई, भोगीलाल (दिल्ली की बी. एल. आई. आई संस्था वाले) भी उपस्थित खण्ड २३, बंश
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