Book Title: Tulsi Prajna 1997 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 172
________________ अहिंसक संस्कृति का प्रसार करें भारत की मूल संस्कृति अहिंसा है । सभी धर्मों में अहिंसा को प्रधानता मिली है । महावीर ने जिसे अहिंसा धर्म कहा, वह मात्र जैनों का धर्म नहीं सभी का धर्म है । ईसा ने प्रेम कहा, बुद्ध ने दया कहा, कृष्ण ने करुणा कहा और इस्लाम ने रहम कहा । दया कहो या करुणा, प्रेम कहो या रहम -- ये सभी अहिंसा के ही प्रतिरूप हैं । ऐलक रयण सागर इस अहिंसा-संस्कृति के अन्तर्भूत अहिंसा और सत्याग्रह के बलबूते पर महात्मा गांधी राष्ट्रपिता के रूप में पूजे गये। इसी तरह महावीर, बुद्ध, कृष्ण, ईसा व पैगम्बर श्री भगवान, अवतार या मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित हुए । अहिंसा की महिमा अपार है । अहिंसा की शक्ति अपार है । जो इसे समझ पाये उसका बेड़ा पार है और जो इसे न समझे उसका बेड़ा मझधार में रहता है। खुशी है हमें कि हमने ऐसी उत्कृष्ट नैतिक संस्कृति के क्षेत्र में जन्म लिया है । लेकिन धिक्कार है हमें कि हम ऐसी उन्नत संस्कृति पाकर भी उन्नति नहीं हो पा रहे हैं । भारत अपनी आदर्श अहिंसा-संस्कृति के कारण गौरवान्वित है । भारतीय नेताओं को चाहिये था कि वे अपनी भारतीय संस्कृति के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर भारत का नाम रोशन करें और ऐसा कोई काम न करें जिससे देश की प्रतिष्ठा घटे । हमारी अहिंसक संस्कृति का अपमान हो । हमारी गौरव गरिमा पर कोई आंच आए । विरोध में अपनी महावीर व बुद्ध आज हमारे देश के प्रमुख नेताओं को चाहिये कि वे हिंसा के आवाज बुलंद करें तो मेरा विश्वास है कि वे भी देश में राम, कृष्ण, की तरह प्रतिष्ठा को प्राप्त होंगे। पूजे जायेंगे । Jain Education International खेद की बात है कि हमारे देश के प्रमुख नेता हिंसा बढ़ाने में भागीदार हो रहे हैं। भारत से मांस का निर्यात हो-यह विचार मात्र भी हमारे लिए पीड़ा और कष्ट देने वाला है जबकि आज शासन की ओर से ऐसे निर्यात को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । हमारे नेता प्रतिष्ठा तो राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध की तरह चाहते हैं किन्तु उनका चरित्र निम्न से निम्नतर हो रहा है । खंड २३, अंक १ For Private & Personal Use Only १६३ www.jainelibrary.org

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