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रंजित अनुकथन है । यदि यह साहित्य नाना शलाका पुरुषों के उदात्त जीवन चरित से सम्पन्न है तो सामान्य वणिक् पुत्रों के दुःख सुख की कहानी से भी परिपूर्ण है। तीर्थकरों की भावोच्छ्वासित स्तुतियों, अनुभव भरी सूक्तियों, रहस्यमयी अनुभूतियों, वैभवविलास की झांकियों आदि के साथ ही उन्मुक्त वन्य जीवन की शौर्य स्नेह सिक्त गाथाओं के बिविध चित्रों से अपभ्रंश साहित्य की विशाल चित्रशाला सुशोभित है। स्वयंभू जैसे महाकवि के हाथों से इसका बीजारोपण हुआ । पुष्पदन्त, धनपाल, हरिभद्र, जोइन्दु, रामसिंह, देवसेन, कनकामर, हेमचन्द्र, सोमप्रभ, जिनप्रभ, जिनदत्त, जिनपद्म, बिनयचन्द्र, राजशेखर, शालिभद्र, अब्दुल रहमान, सरह और काण्ह जैसी प्रतिभाओं ने इसे प्रतिष्ठित किया और रइधू जैसे सर्वतोमुखी प्रतिभा वाले महाकवियों का इसे सम्बल प्राप्त हुआ।
जैनाचार्यों ने अपभ्रंश साहित्य का प्रणयन किया है । इसका कार्यक्षेत्र पश्चिमी भारत, विदर्भ, गुजरात, राजस्थान तथा दक्षिण-भारत के प्रदेश रहे हैं। विद्वानों के कथनानुसार श्रावकों के अनुरोध पर जैन आचार्यों ने अपभ्रंश में रचना की। ये श्रावक देशी भाषा से ही परिचित थे। अन: जैन अपभ्रंश साहित्य में जहां स्थान वैभिन्य के संकेत मिलते हैं, वहां विषय और काव्य रूपों में भी विविधता दर्शनीय है। जैनाचार्य द्वारा लिखे गये साहित्य में महापुराण, पुराण, चरितकाव्य, कथा ग्रंथ, रासग्रन्थ, उपदेशात्मक ग्रन्थ स्तोत्र आदि विविध विषयात्मक ग्रंथ प्राप्य हैं । महापुराणों में पुष्पदन्त का "तिसट्ठि महापुरिस" पुराण, चरित काव्यों में स्वयंभू के 'पउमचरिउ' रिटुनेमि चरिउ, पुष्पदन्त के णायकुमार चरिउ, जसहर चरिउ, मुनिकनकामर का करकंड चरिउ आदि उल्लेखनीय है। कथा ग्रन्थों में भविसयस्तकहा (धनपाल) (छक्कभोकएस) (षट्कर्मोपदेश) (अमरकीर्ति) षज्जुण्ड कहा आदि विशेष महत्त्व के हैं । रासो ग्रन्थों में उपदेश रसायन (जिनदत्तसूरि) नेमिरास (जिनप्रभ) बाहुबलिरास, जम्बूस्वामी रास आदि का नाम लिया जा सकता है।
स्तोत्र ग्रन्थों में अभयदेवसूरि के जयतिहुयणस्तोत्र, ऋषभजिनस्तोत्र आदि एवं उपदेशात्मक ग्रन्थों में योगीन्द्र के परमात्म प्रकाश, योगसार मुनिरामसिंह का पाहुड़दोहा, सुप्रभाचार्य का वैराग्यसार, माहेश्वरसूरि की संयममंजरी आदि ग्रन्थ द्रष्टव्य है ।
रामकथा सम्बन्धी अपभ्रंश साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के समान ही जैन विद्वानों ने अपभ्रंश भाषा में भी रामकथा का गुम्फन किया है । आश्चर्य तो यह है कि अपभ्रंश भाषा में जितने भी रामकथा विषयक ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं वे सब जैनमतावलम्बी कवियों द्वारा प्रणीत हैं। तीन दशक पूर्व जो अपभ्रंश भाषा में लिखे गये रामकथात्मक ग्रन्ध जैन भण्डारों में पड़े हुए थे वे जिज्ञासु अध्येताओं के श्लाध्य प्रयत्नों से सम्प्रति प्रकाश में आये हैं। अपभ्रंश में रामकथा सम्बन्धी तीन ग्रन्थ विशेष महत्त्वपूर्ण हैं । इनमें से दो स्वयंभूदेवकुत पउमचरिउ अथवा रामपुराण (८वीं शती ई०) एवं रइधूरचित पद्मपुराण अथवा बलभद्र पुराण (१५वीं शती ई०) विमलसूरि की परम्परा के अन्तर्गत आते है और
उनसी प्रमा
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