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प्रदर्शित कर रहे हैं । यह तलच्छन्द एवं ऊर्ध्वच्छन्द में पंचरथ योजना पर निर्मित है । सभी जगती पर स्थित है जिसे भिट्ट, खरशि, जाड्यकुम्भ (पद्मपत्र अलंकृत ) वर्णिका, ग्रासपट्टिका, छज्जिका, गजपीठ एवं नरपीठ द्वारा अलंकृत किया गया है । ( पूर्व पार्श्व की दूसरी नरपीठ पर महावीर स्वामी की जीवन लीलाओं के तथा माता त्रिशला का स्वप्न, महावीर का जन्म एवं तपस्या आदि का विशिष्ट अंकन हुआ है । कटि भाग में वेदीबन्ध, जंघा एवं वरण्डिका का निर्माण हुआ है । वेदीबन्ध में छूरक, कुम्भ, अन्तर्पत्र कलश एवं कपोत प्रदर्शित हैं । देवकुलिका सं० २ में कुम्भ भद्रों पर जैन महाविद्याओं एवं यक्ष-यक्षिणियों की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित हैं । इस उत्तरी तथा पूर्वी दिशा में रोहिणी, रोट्या तथा अच्युप्ता है । कर्णी पर अम्बिका तथा ज्वालामालिनी है एवं कपिला पर उत्तरी दिशा में चन्द्रेश्वरी तथा दक्षिणी में यक्ष ब्रह्मशान्ति उपस्थित है । दक्षिणी पूर्वा कोण पर यक्ष कुबेर स्थापित है ।
गर्भगृह के सम्मुख लघु चतुष्की निर्मित है जो स्तम्भों पर आश्रित है । यह घट पल्लव, कड़ी एवं घण्टिका एवं पूर्ण विकसित पद्म सदृश अलंकरण अभिप्रायों से अलंकृत है । चतुष्की का वितान ( चन्दोदा) नाभिच्छन्द शैली का निर्मित है जिसके ऊपर संरंगाशैली ( घण्टा अलंकरण ) का शिखर है जिसके मध्यवर्ती रथिकाओं में जिन देवताओं की तथा पार्श्व में अन्य देवता स्थापित हैं ।
संदर्भ
१. लोक विश्वास के अनुसार ओसिया अपने समृद्धिपूर्ण युग में विशाल क्षेत्र में विस्तृत नगर था जिसके अन्न एवं तेल का बाजार १६ मील दक्षिण एवं
दक्षिण पूर्व में स्थित क्रमशः मथानिया एवं तिवरी नामक स्थल नहीं इस सुसमृद्ध नगर के अनेक द्वारों में से मुख्य प्रवेश द्वार था जो वर्तमान में ओसिया से २८ मील दक्षिण में स्थित है । ए. एस. आई. ए. आर १९०८-०९ पृ० १००
थे। इतना ही घटियाला में भण्डारकर,
२. (i) ओझा गौ. ही. - हिस्ट्री आफ दि जोधपुर स्टेट पृ० १८-२९ (ii) धुन्दली मल्ल नामक साधु के शिष्यों को ग्रामीणों द्वारा भिक्षा न मिलने
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पर साधु ने कुपित होकर संपूर्ण प्राचीन "मेलपुर पट्टन" को पाताल में धंसा दिया | अनेक युगों पश्चात् उप्पल दे नामक परमार युवराज द्वारा इस स्थल को पुर्ननिवसित किया गया । इसी परमार " उप्पल दे" ने अपने शत्रु द्वारा राज्य निर्वासित किए जाने पर प्रहियार (प्रतिहार) वंश के राजा द्वारा इस क्षेत्र में शरण पायी । सम्पूर्ण मारवाड में यह प्रतिहार राजा अत्यधिक शक्ति सम्पन्न था । अतः उसने परमार नरेश को भेलपुर पट्टन के ध्वंसाव शेषों में शरण देकर उसकी रक्षा की । यद्यपि उत्पल दे ने इस नव निवसित नगरी को नैवनेरी नगरी की संज्ञा से विभूषित की परन्तु ग्राम ओसिया भी कहलाया क्योंकि राजकुमार ने वहां " ओस्टा" लिया था ।
- भण्डारकर रिपोर्ट, १९०८-०९, पृ० १००-१०१
३. वही, पृ० १०० १०१
खण्ड २३, अंक १
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