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बिना हठयोग के राजयोग और राजयोग बिना हठयोग व्यर्थ है और जो बिना किसी भी प्रकार का योग साधे यों ही जीवन बीता देता है वह व्यर्थ जीता है क्योंकि उसका जीवन तो मात्र इन्द्रियों की वासनापूर्ति का वायस बनता है
स्थिते देहे जीवति न योगं श्रियते भशम् । इन्द्रियार्थोपभोगेषु स जीवति न संशयः ।।
-परमेश्वर सोलंकी संपादक, तुलसी प्रज्ञा, ज.वि.भा. संस्थान, लाडनूं
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तुलसी प्रज्ञा
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