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जैन कालगणना और तीर्थंकर-परम्परा
परमेश्वर सोलंकी
वैदिक परम्परा में १४ मन्वन्तर काल की सृष्टि है । राजर्षि मनु ने १४ मन्वन्तरों में स्वायंभुव, स्वारोचिष, औत्तम, नामस, रैवत और चाक्षुष-६ मन्वन्तरों के बीतने पर सातवें मन्वन्तर-वैवस्वत में मानवोत्पत्ति कही है और तदनु सात और मन्वन्तरों तक सृष्टि की आयु बताई है । "शतं मे अयुतं हायनान्द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्म:'-- वेदोक्ति के अनुसार यह सृष्टि आयु सौ अयुत हायनों के पीछे क्रमशः २, ३, ४ अंक लिखने पर ४३२ करोड़ वर्ष होती है।
जैन कालगणना में असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल शृंखला है जिसमें हुण्डावसर्पिणी काल में ब्राह्मणवर्ग और पंचम काल में चाण्डाल आदि की उत्पत्ति होती है । उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल शृंखला को छह, छह आरों में विभाजित कर ४,३,२ क्रम से काल परिमाण में कोड़ाकोड़ी सागर माना जाता है। चौथेकाल को बयालीस हजार वर्ष कम एक कोडाकोड़ी सागर और पांचवे-छठे काल को, दुषमा-दुषमा तथा सुषम-सुषमा को, इक्कीस-इक्कीस हजार वर्ष का होने से कालमान दस-दस कोड़ कोड़ी सागर से बीस कोड़ाकोड़ी सागर होता है ।।
जैन परम्परा में १४ कुलकर-प्रतिश्रुति, सम्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरूदेव, प्रसेनजित् और नाभि कहे जाते हैं । नाभि के पुत्र ऋषभ प्रथम तीर्थंकर हैं। उनके पश्चात् महावीर तक २४ तीर्थंकर हैं-ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पावं और महावीर । ऋषभ को ऋषभनाथ, वृषभनाथ और आदिनाथ कहा जाता है। नौवें पुष्पदंत को सुविधिनाथ, १४ वें को अनंतनाथ और अनंतजित्, २० वें मुनि सुव्रत को सुव्रतनाथ, २२ वें नेमि को अरिष्टनेमि और अन्तिम महावीर को वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति, चरमतीर्थकर, ज्ञातनंदन, नागपुत्त, देवार्य आदि अनेकों नामों से स्मरण किया जाता है । इनमें मुनिसुव्रत और नेमिनाथ हरिवंश में और शेष सभी तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंशी कहे गए हैं।'
चौबीस तीर्थंकरों में महावीर-निर्वाण पावापुरी में, नेमिनाथ-निर्वाण अर्जयन्तगिरि (गिरनार), वासुपूज्य का चंपापुरी और ऋषभनाथ का निर्वाण कैलाश (अष्टापद) पर हुआ कहा गया है। शेष सभी का निर्वाण एक स्थान सम्मेद-शिखर पर हुआ बताया जाता है । बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और तेईसवें तीर्थकर पाश्वनाथ खंड २३, अंक १
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