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लाखों वर्ष में तथा कुन्थनाथ से नेमिनाथ तक ६ तीर्थङ्करों की आयु सहस्रकों में दी गयी है उसी प्रकार भारतीय ग्रंथों में सत्ययुग, त्रेता, द्वापर एवं कलियुग में मानव-मायु क्रमशः एकलाख, दश सहस्र, एक हजार व सौ वर्ष कही गयी है। रामायणकार (९।३६।१५ तथा ९।१२८।१०१) कहता है कि दस लाख वर्ष बीतने पर भी हनुमान की मृत्यु न होगी तथा राम के राज्य में सभी एक सहस्र वर्ष तक जीवित रहते थे। अपितु आर्यभट्ट व पुलिश ने अपने ग्रंथों में 'सभी युगों का मान समान माना है । इसी आधार पर लेखक ने प्राचीन भारतीय कालक्रम (समाजधर्म एवं दर्शन ९।३) तथा अपनी इण्डियन क्रानोलाजी, भारतीय विद्या भवन, बम्बई से प्रकाशित की है।
समुद्रगुप्त के जन्मस्थान का पता नहीं किन्तु जायसवाल उसे कारस्कर जाट (कक्कर) पंजाब का बतलाते हैं । मुरादाबाद जिला में संभल ग्राम पश्चिम उत्तरप्रदेश में पंजाब से सटे हैं। प्रयाग प्रशस्ति में उसे विष्णु का अवतार कहा गया है । तथा एक शिलालेख में चन्द्रगुप्त द्वितीय को देवराज इति प्रियनाम्ना संबोधित किया गया है । समुद्रगुप्त महान् शूर, वीर, योद्धा, विजेता, गायक, वादक, कलाविद् व न्यायी था। उसने समस्त भारत को ही नहीं किन्तु द्वीप द्वीपान्तरों व सुदूर नरेशों को भी करद बनाया। शाही शाहानुशाही, शक व मुरण्डादि सभी उसके वशवर्ती थे अतः वह शकों का भी राजा था। उसकी कीर्ति से दक्षिण महासागर सदा लहराता रहता था। उसने विष्णध्वज नामक विशाल वेधशाला पांच करोड़ चालीस लाख स्वर्ण सिक्कों से बनवाया । वह दुःखियों को सहारा, अशरण्य को शरण देता तथा विद्वानों का समादर करता था। इसी कारण उस काल से स्वर्ण युग या कृतयुग का आरंभ होता है। अतः कल्किराज से इस समुद्रगुप्त का समीकरणा करना समीचीन होगा।
यदि हम भारतीय इतिहास लेखन भारत युद्धकाल ३१३७ ई० पू० से करते हैं तब समुद्रगुप्त का काल सिकन्दर के समकाल हो जाता है । भारत युद्ध के बाद बृहद्रथ, प्रयोत, शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, काण्व व आन्ध्रवंश के राजाओं के कुल १०६ नरेशों ने (२२+५+१२+१+१२+१०+४+३२) २८१० वर्ष (१००१+१३+ ३६२+ १००+३१६+३०२+८५+५०६) ।
राज्यकिया। अतः गुप्तवंश के राजाओं का अभ्युदय काल ३२७ ई०पू० (३१३७२८१०) है।
यूनानी लेखक प्लिनी के अनुसार फादर बैकस से सिकन्दर तक १५४ राजाओं का कालमान ६४५१ वर्ष ३ मास है । यदि हम बैकस् का का समीकरण वैवस्वत मनु से करें तो मनु का काल आता है ६७०१ ई० पू० । मनु के बाद कृत, त्रेता, द्वापर के कुल ३६०० वर्ष (१२००४३) होते हैं तथा प्रत्येक युग में १६ प्रमुख नप कहे गये हैं अतः नपसंख्या होगी ४८ किन्तु युधिष्ठिर द्वापर का अन्तिम नृप है जिसने ३६ वर्ष राज्य किया अतः कुल ४७ राजाओं का राज्य काल होगा ३५६४ (३६००-३६) वर्ष । अतः वैकस् या वैवस्वत मनु से समुद्रगुप्त तक के पूर्व तक कुल नृप संख्या होगी (१०६+४७) १५३ तथा उनका काल मान होगा (३५६४+२८१०) ६३७४ वर्ष । यदि इसमें ३२७ का योग करें जो गुप्तनपाभ्युदय काल है तो मनुका १३२
तुलसी प्रशा
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