Book Title: Tulsi Prajna 1997 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 148
________________ भारतीय माप और दूरीयां कोई ७५ वर्ष पहले महानगरी कलकता में विज्ञान परिषद के वार्षिकोत्सव के अधिवेशन में किसी अंग्रेज वैज्ञानिक ने चुटकी ली कि भारत विज्ञान में काफी पिछड़ा हुआ है तो डा. मेघनाथ शाह ने बचाव पक्ष में कहा कि आप ठीक फरमाते हैं परन्तु आज भी आपकी तौलने की इकाई ( unit ) ग्राम चना ही है, और भारत में खसखस है। एक ग्राम ( gram) में कोई १ हजार खसखस होते हैं । अतः आज भी भारत आप से हजार गुना आगे है । प्रताप सिंह मेरी यह धारणा है कि हमारी अवनति का एक कारण मानसिक आलस्य ही है । हम, वेद में ज्ञान विज्ञान अनन्त है, को भूल गए हैं । कोई ५०-६० वर्ष से मैं गणितज्ञों और वैज्ञानिकों से पूछता आ रहा हूं कि वृत्त में ३६० अंश तथा उसके चार भाग कर समकोण में ९० अंश ( degree) क्यों होते हैं ? सभी का उत्तर समान है कि ऐसी मान्यता है । कुछ कालान्तर में ऋग्वेद के मंत्र (२-१६४-४८) को देखा कि वाक् वाणी चार हैं, वेद चार हैं, वर्ण चार हैं, आश्रम चार, दिशाएं चार, पुरुषार्थ चार, अहंकार चतुष्ठय, दिन के चार प्रहर आदि हैं । तो वृत्त (circle) के भी चार भाग करने पर समकोण में ९० अंश ( degree) आ जाता है । इस प्रकार वृत्त में ३६० अंश का आधार ऋग्वेद का ॠ. (१-१६४-४८ ) मंत्र है । यही मंत्र अथर्व वेद (९०-८- ४ ) में भी है । इस मंत्र में खगोल को बैलगाड़ी के लकड़ी के पहिए के समान कहा है। जो परमात्मा रूपी धुरी (anile) पर घूमता है । अथर्ववेद के दूसरे (९-९-११) मंत्र के अनुसार यह पहिए का धुरा कभी न टूटता है, न कभी गर्म होता है । क्योंकि परमात्मा सदा एक रस स्थिर रहता है । Jain Education International ऋग्वेद का मंत्र (१-१६४-१२) पांच काल - अवयव, क्षण, मुहूर्त, प्रहर, दिन, पक्ष, ६ ऋतुएं, ३६० अहोरात्र तथा १२ मास का वर्ष देता है । अथर्व वेद मंत्र (२०-४८-६) तथा सामवेद का यही मंत्र ( ६.३२) एक अहोरात्र ३० मुहूर्त का कहता है । ऋग्वेद मंत्र ( १ - १६४-४८) भी १२ मास का वर्ष तथा ३६० अहोरात्र का वर्ष देता है । ऋग्वेद (४- ३५ -४) मंत्र ३० अहोरात्र का मास और १२ मास का वर्ष कहता है । यहां पर अहोरात्र सूर्य से, मास चन्द्रमा की ३० तिथियों से तथा वर्ष सूर्य से निर्धारित है । परन्तु यह चन्द्र मास ३० अहोरात्र से कुछ न्यून होता है । प्रतिमास १ तिथि क्षय होती है, अतः १ वर्ष वा १२ मास में लगभग १२ तिथियां क्षय होती खण्ड २३, अंक १ १३९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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