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अगले दस श्लोकों में धवलराज के यश और शौर्य का बखान है। दसवें श्लोक में लिखा है कि मुजराज ने जब मेदपाट के अघाटपुर पर चढ़ाई की और उसका नाश किया और जब उसने गुर्जर नरेश को भगा दिया तब धवलराज ने उनकी सेना को आश्रय दिया। ग्यारहवें श्लोक में धवलराज द्वारा महेन्द्रराजा को दुर्लभराज के पराजय से बचाये जाने का उल्लेख है। बारहवें श्लोक में मूलराज द्वारा धरणीवराह पर चढ़ाई होने पर अनाश्रित धरणीवराह को धवलराज द्वारा शरण देने का वर्णन है।
श्लोक संख्या १३ से १८ तक धवलराज का गुणगान किया गया है । १९वें श्लोक में वृद्धावस्था आने पर धवलराज द्वारा अपने पुत्र बालप्रसाद को राज्यभार सौंपने का ब्यौरा है और फिर सताइवें श्लोक तक हस्तीकुण्डी की शोभा वर्णित है।
अट्ठाइसवें श्लोक में लिखा है कि इस प्रसिद्ध हस्तीकुण्डी नगर में शांतिभद्र नामक प्रभावशाली आचार्य रहते थे। २९वें श्लोक में शांतिभद्रसूरि द्वारा वासुदेवसूरि को आचार्य पद देने का उल्लेख है और उन्हें विग्रहराज का गुरु कहा गया है। श्लोक ३१,३२ में शांतिभद्रसूरि की प्रशंसा है और ३३वें श्लोक में उनके उपदेश से गोठी संघ द्वारा तीर्थंकर ऋषभदेव मन्दिर के पुनरुद्धार करने का उल्लेख है। दो श्लोकों में इस मन्दिर का मनोहारी वर्णन है और छत्तीसवें-सेंतीसवें श्लोकों में बताया गया है कि उक्त मन्दिर विदग्धराज ने बनवाया था जिसका पुनरुद्धार किया गया तो संवत् १०५३ की माघ सुदी १३ को श्री शांतिसूरिजी ने उसमें प्रथम तीर्थंकर की सुन्दर मूर्ति प्रतिष्ठित की।
शेष तीन श्लोकों में क्रमश: राजा विदग्धराज द्वारा स्वर्णदान, मन्दिर की यावत् चन्द्रदिवाकर स्थिरता और प्रशस्तिकर्ता सूर्याचार्य का उल्लेख किया गया है। ___अन्त में एक पंक्ति में लिखा गया है कि उक्त मन्दिर की प्रतिष्ठा सं० १०५३ माघ सुदी १३ को पुष्य नक्षत्र में की गई और मन्दिर पर ध्वजारोपण हुआ।
ये दोनों लेख ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व के हैं। स्पष्ट है कि दोनों शिलालेख एक साथ राजा बालप्रसाद के शासन काल में और श्री शांतिसूरि के सान्निध्य में उत्कीर्ण हुए हैं।
श्री शांतिसूरिजी के गुरु वासुदेवसूरि अपर नाम बलभद्र आचार्य, उनके गुरु शांतिभद्रसूरि हैं। श्री शांतिसूरिजी के शिष्य केशवसूरि है जिनकी संतति के लिए ये शासन पत्र लिखा गया है।
राजा बालप्रसाद का शासन वि० सं० १०५३ में वर्तमान था किन्तु उसके पिता राजा धवलराज का शासन संभवतः सं० १००० से पूर्व शुरू हो गया था क्योंकि सं० ९९६ में धवलराज के पिता मम्मटराज का शासन था । हस्तीकुण्डी में गुर्जर नरेश महेंद्रराज, धरणीवराह-तीन शासनाध्यक्षों को शरण सिली- यह इस शिलालेख की सर्वाधिक महत्व की सूचना है।
तुलसी प्रज्ञा
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