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की पहचान स्पष्ट न हो सकी । जंघा भाग पर पूर्व में ईशान तथा पश्चिम में वरूण है । इसके वरण्डिका पर वृहदाकार " प्रासाद पुत्र" स्थापित है । उल्लेख्य है कि यह तत्त्व पश्चिम भारत में पन्द्रहवी शती में प्रचलित था ।
आभ्यन्तर भाग :- बाह्य भाग के समान ही आभ्यन्तर भाग में भी उल्लेखनीय तत्त्व विद्यमान हैं। गर्भगृह के आन्तरिक भाग में तीन वृहदाकार रथिकाएं निर्मित हैं परन्तु सभी मूर्ति रहित हैं । इसके द्वारों को भी शीशें एवं रंगों से वर्तमान समय में अलंकृत कर दिया गया है । उल्लेख्य है कि पहाड़ी पर स्थित सच्चियमाता मन्दिर में भी यही स्थिति है । यहां निर्मित प्रायः सभी स्तंभ मद्रक शैली के है अन्तराल एवं मण्डप की छत रंगों से अलंकृत है तथा अन्तराल की दोनों रथिकाएं भी रिक्त हैं । शाला के चारों स्तम्भ वर्गाकार ( रूपका शैली) बने हैं जिनके किनारे काट दिए गए हैं । इन पर घटपल्लव, नाग पाश लिए आवक्ष नाग आकृतियां एवं ग्रासमुख अभिप्राय अलंकृत है । मण्डप की छत नाभिछन्द शैली की है जिनमें गजतालु आकृतियां चाप के आकार में प्रदर्शित की गई हैं ।
भद्राओं के गवाक्षों के आभ्यन्तर भाग पर रथिकाओं में जैन देव समाहत अंकित था परन्तु वर्तमान समय में मात्र गूढमण्डप के दो रथिकाओं में कुबेर एवं वायु दो देव उपस्थित है (इस प्रकार छः दिक्पाल बाह्य भाग पर एवं दो आन्तरिक भाग में कुल मिलाकर अष्ट रथिकाओं की आठ संख्या पूर्ण करते हैं) ।
गूढ़ मण्डप के चैत्याकार गवाक्षों में (सूरसेनक) देव प्रतिमाएं हैं। इन पर उत्तर पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर क्रमश: रोहिणी, वंशेट्या, महामानसी एवं निर्माणी प्रदर्शित हैं । प्रत्येक भद्र के ऊपरी भाग में रथिकाओं में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की उनके पाश्वचरों के साथ भव्य मूर्तियां स्थापित हैं । यहीं एक रूप पट्टिका में जो माला के समान चतुर्दिक प्रदर्शित है, जैन तीर्थकरों को अंकित किया गया है ।
गूढ मण्डप के प्रवेश द्वार का अलंकरण त्रिशल शैली का है जिसकी प्रथम शख ( वाह्यशख) पद्मपत्तों से मध्यवर्ती शख ( वल्वशाखा ) रत्न अलंकरण एवं तृतीय ( अन्तरिक ) सादी है । उल्लेख्य है कि शिल्प शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि मंदिर के भित्ति जितनी रथिकाओं से युक्त हो उसके द्वारों पर उतने ही शखों का अंकन करना चाहिए । खजुराहो आदि में तो वैष्णव मन्दिर देवी जगदम्बी नव रथ योजना पर निर्मित है तथा उसमें द्वार नवशखों का प्रदर्शन हुआ है । विभिन्न मन्दिरों के अवलोकन से यह तथ्य उद्भाषित भी होता है । ओसिया के प्रायः सभी मन्दिरों के द्वारों पर आवक्ष नाग आकृतियां प्रदर्शित हैं । जिनमें कुछ को ललाट बिम्ब स्थित गरूड़ अपने पंजों में पकड़े हैं । परन्तु यहां जैन मन्दिर होने के कारण द्वार शख का अलंकरण पूर्ण रूपेण भिन्न है तथापि द्वार शखों पर सभी सम्प्रदायों के मन्दिरों के समान ही गंगा एवं जमुना उटंकित की गयी है । द्वार उत्तरड़े के मध्यभाग में ललाट विम्ब पर जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति सुशोभित है ।
मुखमण्डप के स्तंभों पर भी घट पल्लव, विद्याधर पंक्ति एवं सर्वानुभूति सदृश देव आकृतियों का प्रदर्शन हुआ है ।
खण्ड २३, अंक १
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