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है । आख्यात से लक्षणा द्वारा प्रतियोगित्व की स्मृति होती है। यहां आश्रयत्व संबंध है। अतः इस वाक्य से 'नाशप्रतियोगित्वाश्रयो घट: ऐसा शाब्दबोध होता है । वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'घटनाशानुकूल वर्तमानकालिकव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'घटनाशानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। __ नैयायिकों के अनुसार 'विद्यते' यहां विद् धातु से सत्त्व की स्मृति होती है । तिङ् से लक्षणा द्वारा आश्रयत्व की स्मृति होती है। यहां आश्रयत्व संबंध है । अतः इस वाक्य से 'सत्त्वाश्रयत्वाश्रयः१२० ऐसा शाब्दबोध होता है। वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'सत्तानुकूलो वर्तमानकालिको व्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'सत्तानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है।
नयायिकों के अनुसार निद्राति' यहां नि पूर्वक द्रा धातु से मेध्या नामक नाड़ी और मन के संयोग की स्मृति होती है । आख्यात के द्वारा शक्ति से कृति की स्मृति होती है । यहां आश्रयत्व संबंध है। अत: इस वाक्य से 'मेध्यामनःसंयोगानुकूलकृत्याश्रयः११ ऐसा शाब्दबोध होता है। वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'मेध्यामनःसंयोगानुकूलवर्तमानकालिकव्यापार:' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'मेध्यामनःसंयोगानुकूला वर्तमान कालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है ।
नैयायिकों के अनुसार 'चैत्रो मैत्रं तण्डुलं पाचयति' इस णिजन्त प्रयोग स्थल में मैत्र पद से उत्तरवर्ती द्वितीया विभक्ति का वृत्तित्व अर्थ है । तण्डुल पद से उत्तरवर्ती द्वितीया से फल की स्मृति होती है। णिजन्त पच् धातु से पाकानुकूल व्यापार अर्थ की स्मृति होती है। आख्यात से लक्षणा द्वारा पाकानुकूलव्यापारानुकूलव्यापार की स्मृति होती है । यहां आश्रयत्व संबंध है । अतः इस वाक्य से 'तण्डुलवृत्तिकर्मत्वानुकूलपाकानुकूलमैत्रवृत्तिव्यापारानुकूलव्यापारवांश्चैत्रः१२२ ऐसा शाब्दबोध होता है। वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'चैत्राभिन्नैककर्तृकप्रयोज्यमैत्रवृत्तितण्डुलकर्मकपाकानुकूलवर्तमानकालिकव्यापार:' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'चैत्राभिन्नैककर्तृका प्रयोज्यमैत्रवृत्तिता तण्डुलकमिका पाकानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है।
नयायिकों के अनुसार 'चत्रेण मैत्रस्तण्डुलं पाच्यते' यहां वृत्तित्व संबंध है । तृतीया विभक्ति द्वारा व्यापार का बोध होता है। पाचि धातु से पाकानुकूलव्यापार बोधित होता है । कर्म और तिङ् से आश्रयत्व की प्रतीति होती है । द्वितीया विभक्ति से कर्मत्व का ज्ञान होता है । अतः इस वाक्य से 'चत्रवृत्तिर्यो व्यापारस्तज्जन्यो यस्तण्डुलवृत्तिकमतानुकूलपाकानुकूलव्यापारस्तदाश्रयो मैत्रः१५ ऐसा शाब्दबोध होता है । वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्य स्थल से 'अस्वतन्त्रकतुं रूपचैत्रवृत्तिमंत्राभिन्नैककर्तृकतण्डुलकर्मकपाकानुकूलवर्तमानकालिकव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'अस्वतन्त्रकर्तृ रूपचत्रवृत्तिता मैत्राभिन्न ककर्तृका तण्डुलकर्मि कापाकानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है।
नैयायिकों के अनुसार 'गिपठिषति' यहां पठ् धातु से पाठ की स्मृति होती है।
खंड २३, अंक ४
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