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प्रियतमा को हटाकर नायिका के गण्डस्थल में प्रतिबिम्बित प्रिया के मुख को अतिशय प्रेम से देखते हुए नायक के प्रति रहस्य को जानने वाली नायिका की यह उक्ति है।
नायिका नायक के दृष्टिगोचर को जान लेती है । अत: वाक्य वैशिट्य से प्रच्छन्न कामकत्व की अभिव्यंजना होती है । वाच्य वैशिष्टय
वाच्य वैशिष्ट्य के सम्बन्ध में काव्यप्रकाशकार मम्मट ने उदाहरण प्रस्तुत किया है । नायिका के प्रति कामुक नायक अथवा दूती की यह उक्ति है। नर्मदा का उच्च प्रदेश तथा उसके विशेषण वातकुञ्ज आदि के रूप में जो वाक्य है उनकी विलक्षणता के कारण सहृदयजनों को एक विशेष व्यंग्य रूप अर्थ की प्रतीति होती है। इस श्लोक के प्रत्येक पदों में अभिव्यंजकता का पुट उपलब्ध होता है । यहां नर्मदा का नदी विशेष ही अर्थ नहीं अपितु जो नर्म अर्थात् पीड़ा को प्रदान करती है ।
उद्देश्य से स्थान की निर्जनता व्यंजित होती है । सरस शब्द कटुशब्दसाहित्य को अभिव्यक्त करता है। इसी प्रकार अन्य पद भी अनेक अर्थ की अभिव्यंजना करते हैं। अन्य सन्नितार्थ वैशिष्ट्य
अन्य सन्निधि के संयोग से भी वाच्य अर्थ विशेष का व्यंजक माना जाता है। इसमें अन्य सन्निधि वैशिष्ट्य के द्वारा नायिका का नदी के किनारे संकेत स्थान पर मिलन यह अर्थ व्यंजित होता है।
'काव्यप्रकाश' में भी मम्मट ने इसका उदाहरण निरूपित किया है ।
नायिका पार्श्ववर्तिनी को सम्बोधित करके अपनी सास को उलाहना देती हुई कहती है कि दया से रहित हृदय वाली मेरी सास मुझे दिन भर घर के कार्यों में संलग्न रखती है। थोड़ा समय यदि मिल भी जाता है तो वह सायंकाल को ही मिल पाता है।
यहां पर यह व्यंजना होती है कि दिन में श्रम की अधिकता के कारण अवकाश ही नहीं मिल पाता है। अतः सायंकाल ही मिलन का समय है, यह व्यंग्या निकलता है। प्रस्ताव वैशिष्ट्य
प्रस्ताव के द्वारा भी वाच्य व्यंजक माना जाता है ।" सखियों के द्वारा पति के आगमन पर अभिसरण की प्रवृत्ति को त्याग दो यह प्रस्ताव वैशिष्ट्य से व्यंजित होता है।
'काव्यप्रकाश' में भी इसका उदाहरण प्राप्त होता है कि किसी नायिका की सखी उसको उपपत्ति के पास जाने से रोकती है। उसका कहना है कि ऐसा समय हो रहा है कि तुम्हारा पति प्रहरमात्त में ही आने वाला है। अतः तुम्हें उसकी सेवा के योग्य उचित सामग्रियों का संकलन करना आवश्यक है। यहां पर प्रहर शब्द का सन्निवेश करने से शीघ्रागमन की व्यंजना होती है। ___ इस पद्य में उपनायक के पास अभिसरण के प्रस्ताव का वैशिष्ट्य है।
तुलसी प्रज्ञा
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